मायसेलियम (Mycelium)
उद्देश्य (Aim): मायसेलियम की संरचना, वृद्धि और कार्यों का अध्ययन करना। इससे कवक के बहुकोशिकीय तंतु-पुंज (hyphal network) का अवलोकन होता है।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): कवक (जैसे Rhizopus, Aspergillus) की कल्टीवेशन, पेट्री डिश, पौष्टिक माध्यम, कांच की स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी।
वर्गीकरण (Classification): मायसेलियम कवक मंडल (Kingdom Fungi) का एक विशेष अंश है। यह अस्कोमाइकोटा और बैसिडियोमाइकोटा (आमतौर पर “कप कवक” और मशरूम) वर्ग के कवकों में प्रमुखता से पाया जाता है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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मायसेलियम शाखित, धागों जैसे (thread-like) बहुकोशिकीय हाइफा से मिलकर बनता है।
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हाइफा सामान्यतः विभाजित (सेप्टेट) या बिना विभाजन (कोनोसाइटिक) हो सकती हैं। सेप्टेट हाइफा में समानांतर सेप्टा (सेप्टा) होते हैं, जबकि कोनोसाइटिक हाइफा में सेल दीवारों के बीच विभाजन नहीं होता।
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कवक की असामान्य वृद्धि के लिए मायसेलियम पोषक तत्वों का अवशोषण करता है; यह पर्यावरण से एंजाइम स्रावित करके जैविक सामग्री को विघटित करता है।
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मैसलियम कवक का मुख्य अचिन शारीरिक (वेजिटेटिव) भाग होता है और यह कवक के अस्पष्ट शरीर (थैलेस) का निर्माण करता है।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): प्रयोग में कवक की कल्टीवेशन पर सफेद या हल्के रंग का जालीदार जाल (माइसेलियम) विकसित होता दिखाई देगा। सूक्ष्मदर्शी से एकल हाइफा तंतुओं तथा विभाजन की उपस्थिति देखी जा सकती है।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
माइसेलियम धूल, सड़े हुए काष्ठ या पौष्टिक माध्यम में सफेद सूत्री तंतु के रूप में पाया जाता है। इन तंतुओं की दीवारों में मुख्यतः कीटिन (chitin) पाया जाता है। माइसेलियम के हाइफा काफी शाखित होते हैं, जिनमें कोशिका विभाजन की स्थिति के अनुसार सेप्टम बनते हैं। ट्यूबाकार हाइफा एक दूसरे से जुड़कर जाल जैसा जटिल नेटवर्क बनाते हैं, जो कवक के जीवन चक्र और पोषण के लिए महत्त्वपूर्ण होता है।
मिक्सोमायकोटा (Myxomycota)
उद्देश्य (Aim): मिक्सोमायकोटा (झागी कवकों) के प्लास्मोडियम और जीवन चक्र का अध्ययन करना। उद्देश्य इन कवकों की झागनुमा विशेषताओं और पोषण पद्धति की समझ प्राप्त करना है।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): मिक्सोमायकोटा नमूना (जैसे Physarum, Dictyostelium), स्लाइड और कवर स्लिप, सूक्ष्मदर्शी।
वर्गीकरण (Classification): मिक्सोमायकोटा (झागी कवकों) को पारंपरिक रूप से कवक मंडल में रखा जाता था, परंतु कुछ आधुनिक वर्गीकरण में इन्हें प्रोटिस्टा समूह में भी माना जाता है। Olive (1975) ने इन्हें प्रोटिस्टा में विभाजित किया, जबकि अन्य मतों में इन्हें कवकों की संकुल में Myxomycota उपवर्ग के अंतर्गत रखा गया है। सामान्यतः इन्हें अमीबों से मिला माना जाता है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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मिक्सोमायकोटा का पोषक (वेजिटेटिव) चरण प्लास्मोडियम कहलाता है, जो एक विशाल बहुनाभिकीय साइटोप्लाज्मिक द्रव्यमान होता है, जिसमें कोशिका दीवार नहीं होती।
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ये कोनोसाइटिक होते हैं: उनका शारीरिक भाग केवल झिल्ली-घिरित प्रोटोप्लास्ट से बना होता है, कोशिका भित्ति रहित।
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पोषण के दौरान ये फागोट्रोफ़िक (phagotrophic) होते हैं; अपना भोजन लेने के लिए चारों ओर फैल कर कीटाणुओं और सूक्ष्मजीवों को निगल लेते हैं।
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लैब में सजीव नमूने पर सफेद या रंगीन प्लास्मोडियम दिखाई दे सकता है, जो धीरे-धीरे फैलता है और अमीबोइड मोड़ दिखाता है।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): प्रयोग में Physarum या अन्य स्लाइम मोल्ड के नमूने में बहुनाभिकीय प्लास्मोडियम का विकास देखा जाएगा। प्रकाश माइक्रोस्कोपी से कोशिका दीवार की अनुपस्थिति और फैंफाटा जैसा गतिशील प्रोटोप्लाज्मा स्पष्ट होगा।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
मिक्सोमायकोटा का प्लास्मोडियम स्तरीय, खोल रहित जाल के समान द्रव्यमान होता है। Physarum polycephalum जैसे उदाहरणों में सफेद या पीले रंग का विलयित कोषिका-रहित द्रव्यमान बनता है, जो विषम दिशाओं में फैलता है और अंतःप्रवाह करके पोषक तत्व इकट्ठा करता है। परागनाशकियों (स्पोरोन्ज़िया) का निर्माण अनुकूलन पर प्लास्मोडियम से होता है, जिसमें झिल्ली और कोशिका दीवार बनते हैं।
म्यूकोरेलेस (Mucorales)
उद्देश्य (Aim): म्यूकोरेलेस क्रम (जैसे Rhizopus, Mucor) के कवकों का अध्ययन, विशेषकर इनके बढ़ने के गुणों का परीक्षण करना।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): Rhizopus या Mucor संस्कृति, पोषक माध्यम, स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी।
वर्गीकरण (Classification): म्यूकोरेलेस कवक अधिविभाग (पूर्व में Zygomycota) का एक क्रम है। ये सबसे अधिक रूप से खाद्य-सड़न (bread mold) कवकों में पाए जाते हैं। आधुनिक वर्गीकरण में इन्हें विभाजन Mucoromycota के अंतर्गत भी रखा गया है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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ये कवक अत्यंत तीव्र गति से बढ़ते हैं और इनके हाइफा चौड़ी एवं बिना विभाजन के होते हैं। म्यूकोरेलेस की शिराएँ आमतौर पर 10–20 माइक्रोमीटर चौड़ी होती हैं और इनमें सामान्यत: विभाजन नहीं पाया जाता।
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इनके ऊर्ध्वमुखी स्पोरैन्ज़ियोफ़ोर पर थैलिक स्पोरैन्ज़िया (थैलीसदृश थैलियाँ) विकसित होती हैं जिनमें सहजीवी बीजाणु (स्पोरोन्ज़ियोस्पोर) बनते हैं। यह असंततियांधिक प्रजनन के लिए अनुकूल होती हैं।
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Rhizopus जाति के उदाहरणों में, भूमिगत मायकोरिज़ा सदृश जमात होती हैं, जो पोषक माध्यम के लिए द्वीपनीय आधार (rhizoids) बनाती है। Mucor और Syncephalastrum जैसे अन्य जीनस में चारों ओर घने जाल उपलब्ध होते हैं।
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म्यूकोरेलेस सदृश कवक मनुष्यों में म्युकोरमाइकोसिस रोग भी उत्पन्न कर सकते हैं, विशेषकर प्रतिरक्षा-क्षीण व्यक्तियों में।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): प्रयोग में Rhizopus कल्टीवेशन में सफेद ऊर्ध्वमुखी कोलियाँ और गोलाकार स्पोङ्ज़िया प्रकट होंगे। सूक्ष्मदर्शी से चौड़ी सेप्टोलेस हाइफा तथा स्पोरोन्ज़िया और स्पोरोन्ज़ियोस्पोर्स दिखेंगे।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
म्यूकोरेलेस कवकों का मायसेलियम भू-पृष्ठ पर फैलने वाला सफेद या भूरा जाल होता है। Rhizopus में भूमिगत स्तर पर राइजोइड्स (rhizoids) होते हैं जो परसंस्थान करते हैं। ऊपर की ओर बढ़ते हुए हाइफा स्पोरैन्ज़िआ फोर्स बनाती हैं, जिनके शीर्ष पर गोलाकार या अंडाकार स्पोरोन्ज़िया होते हैं। प्रत्येक स्पोरोन्ज़ियम में सैकड़ों छोटे स्पोरोन्ज़ियोस्पोर्स उत्पन्न होते हैं, जो कवक की फैलाव क्षमता को बढ़ाते हैं।
लाइकेन (Lichen)
उद्देश्य (Aim): लाइकेन की द्वैत्व-जीवसहजिविता (फंगस + शैवाल/सियनोबैक्टीरिया) का अध्ययन करना। नमूने की संरचना और फंगल तथा फोटोसिंथेटिक घटकों की जाँच करना इस प्रयोग का उद्देश्य होगा।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): लाइकेन नमूना (जैसे पेड़ की छाल पर पाया जाने वाला) स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी, झाड़ी, पैन, पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड (KOH) जैसी केमिकल्स।
वर्गीकरण (Classification): लाइकेन एक जीववैज्ञानिक संघ (symbiotic association) है, स्वयं कोई स्वतंत्र जीव नहीं। इसमें कवक (प्रमुखतः असकॉमिकोटा वर्ग का) और हरित शैवाल या सियनोबैक्टीरिया दोनों शामिल होते हैं। लगभग 98% लाइकेन फंगल पार्टनर कप कवक (Ascomycota) वर्ग के होते हैं। थैलस रूप के आधार पर इन्हें तीन मुख्य प्रकारों में बांटा जाता है: क्रस्टोज (क्रसटस), फोलियोज (फोलीओस) और फ्रुटिकोज (फ्रुटिकोस)।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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लाइकेन पूर्ण सहजीवी होते हैं: कवक सदस्य पानी, खनिज एवं संरचनात्मक समर्थन प्रदान करते हैं, जबकि शैवाल/सियनोबैक्टीरिया प्रकाश संश्लेषण करके पोषक (कार्बोहाइड्रेट) उपलब्ध कराते हैं।
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लाइकेन कठोर परिस्थितियों (जैसे रेगिस्तान, ध्रुवीय क्षेत्र) में भी जीवित रह सकते हैं और पर्यावरणीय प्रदूषण के संकेतक माने जाते हैं।
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उनके थैलस (कवक + शैवाल की संयुक्त थैली) में जल-भंडारण कोशिकाएँ और विशिष्ट संरचनाएँ (जैसे राइज़िनेस – धागे जैसी जड़ें) होती हैं।
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क्रस्टोज लाइकेन पतले, सब्सट्रेट से चिपके रहते हैं; फोलियोज लाइकेन पत्ते-समान होते हैं; फ्रुटिकोस लाइकेन झाड़ियों या शाखायुक्त होते हैं।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): प्रयोग से लाइकेन के सहजीवी स्वभाव की पुष्टि होगी। के.ओ.एच. का प्रयोग करके कवक-शैवाल परतों के बीच की भिन्नता देखी जा सकती है। अलग-अलग प्रकार के लाइकेन (क्रस्टोज, फोलियोज, फ्रुटिकोस) के नमूनों की संरचनात्मक रूपरेखा समझ में आएगी।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
लाइकेन का थैलस असामान्य रूप से उभरा हुआ हो सकता है। चित्र में एक फ्रुटिकोस लाइकेन शाखों पर उगता दिख रहा है। इसकी संरचना में फंगल हाइफा बाहर की मोटी छाल की परत बनाते हैं, जबकि बीच की परत में हरित शैवाल या सियनोबैक्टीरिया के कोष उपस्थित हैं। अंतः सतह पर पानी और पोषक समाहित करने वाले थैलीकोइड या ग्लोब्यूलर सेल होते हैं। लाइकेन की ऊपरी त्वचा वक्षस्थलिका (upper cortex) फंगल हाइफा से बनी होती है, इसके नीचे फ़ोटोसिंथेटिक कोशिकाएँ और सबसे नीचे निचला कंठिका (lower cortex) होती है, जो पर्यावरण से चिपकने में मदद करती है।
क्लैम्प कनेक्शन (Clamp Connection)
उद्देश्य (Aim): बैसिडियोमाइकोटा कवकों में क्लैम्प कनेक्शन की उपस्थिति और कार्य का अध्ययन। यह प्रयोग दिखाएगा कि कैसे ये संरचनाएँ न्यूक्लियर वितरण और गुणसूत्रीय विविधता बनाए रखती हैं।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): उच्च वर्ग (mushroom) के बैसिडियोमाइसीट कवक के हाइफा स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी, कलरिंग एजेंट (लैक्टोफेनॉल ब्लू, कोर्न प्लेट्स, आदि)।
वर्गीकरण (Classification): क्लैम्प कनेक्शन विशेष रूप से बैसिडियोमाइकोटा (Kingdom Fungi) के कवकों में पाया जाता है। यह संरचना बैसिडियोमाइसेट कवकों की विशिष्ट पहचान है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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यह हाइफा के बीच हुक या कुंडली के समान एक उभारदार संरचना होती है जो युग्मानुक्रम (dikaryotic) कोशिका विभाजन में न्यूक्लियाई संतुलन बनाए रखती है।
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प्रत्येक सेप्टेट सेल (द्विभाजित कोशिका) को दो विभिन्न आवर्ती नाभिक प्राप्त करने के लिए क्लैम्प बाहरी हाइफ़ा से उभरता है और विभाजन (माइटोसिस) के बाद बने एक नाभिक को नयी कोशिका में पहुंचाता है।
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क्लैम्प कनेक्शन बैसिडियोकॉर्टा कवकों में अनुवांशिक विविधता बनाए रखने में मदद करता है। यह कुछ हद तक अस्कोमाइकोटा में पाए जाने वाले क्रोज़ियर्स (croziers) जैसा कार्य करता है।
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सभी बैसिडियोमाइकोटा में क्लैम्प नहीं होते, पर जहां होते हैं, वहाँ से उनकी पहचान में मदद मिलती है।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): सूक्ष्मदर्शी अवलोकन में विभाजित हाइफ़ा की एक शाखा पर हुक जैसी संरचना दिखाई देगी, जो द्विनाभिकीय कोशिका विभाजन के पश्चात बनती है। इससे प्रत्येक नए कोष को दो विभिन्न न्यूक्लिय प्राप्त होते हैं। प्रयोग से यह स्पष्ट होगा कि क्लैम्प कनेक्शन द्वारा बैसिडियोमाइसेट कवक में संबंधी कोशिकाओं में n+n युग्मानुक्रम बनाए रखा जाता है।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
क्लैम्प कनेक्शन हाइफ़ा पर एक हुक (घुमावदार उभार) के रूप में बना हुआ दिखाई देता है। चित्र में साफ़ दिख रहा है कि दो बहुविकर्णीय (dikaryotic) कोशिकाओं के बीच में लघु सेप्टम बनने से पहले यह हाइफ़ा बाहर की ओर झुकता है। विभाजन के पश्चात इसमें बने द्वितीय न्यूक्लियस को क्लैम्प के माध्यम से दूसरी कोशिका में स्थानांतरित किया जाता है। यह संरचना लगभग 10 माइक्रोमीटर की सीमा में होती है (चित्र में स्केल ~10 μm दी गई है)।
एपोथीसियम (Apothecium)
उद्देश्य (Aim): एसकोमाइकोटा वर्ग के खुले कटोरे जैसे फलांग (cup fungus) एपोथीसियम के संरचनात्मक अध्ययन। प्रयोग में इसके तंतुओं और बीजाणुओं पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): पेज़ीजा (Peziza) या मोरेल (Morchella) जैसे कवक के एपोथीसियम नमूने, स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी, कलरिंग एजेंट (लैक्टोफेनॉल ब्लू)।
वर्गीकरण (Classification): एपोथीसियम अस्कोमाइकोटा कवकों का प्रजननांग (ascocarp) है। यह अस्कोमाइसेट (sac fungi) में पाया जाता है और ‘कप कवक’ (cup fungi) कहा जाता है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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एपोथीसियम एक विस्तृत, खुला कटोरे जैसा फलांग होता है, जो अक्सर मांसल (fleshy) होता है।
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इसकी संरचना में शीर्ष पर गढ्ढे (concave surface) वाली हिमेनियम पर सीधे एससीआई (asci) होते हैं, जिनमें बीजाणु बनते हैं।
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वयस्क अवस्था में एससीआई की चैनलात्मक आकृति होती है और ये हिमेनियम पर खुली रहते हैं, जिससे बीजाणुओं का प्रसार आसान हो जाता है।
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एपोथीसियम प्रायः भूमिगत नहीं, सतही उगते हैं। मोरेल जैसे जंतुओं में कई छोटे-छोटे कप आपस में जुड़कर बड़े फलांग का रूप ले लेते हैं।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): प्रयोग से एपोथीसियम के खोलदार कटोरे में एससीआई पर बने एस्कोस्पोरों का निर्माण देखा जाएगा। पॉटेशियम हाइड्रॉक्साइड (KOH) या सेलुलर संरचना अलग करने वाली दवाओं का उपयोग करके काटकर स्लाइड पर रखे जाने पर एससीआई की परतें और बीजाणु स्पष्ट रूप से दिखेंगे।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
एपोथीसियम का आकार खुला कटोरा जैसा होता है। इसका ऊपरी सतह (hymenium) नीला या सफेद भी हो सकता है, जिस पर कोशिका-पंक्तियों के रूप में गोल-मटोल एससीआई पाए जाते हैं। एससीआई में चार से आठ एस्कोस्पोर विकसित होते हैं। कटोरे के आधार में पतली तंतु-पुंज (exciple) होती है, जो हिमेनियम को सहारा देती है। मैदान पर उगने वाले एपोथीसियम आमतौर पर कुछ मिलीमीटर से कुछ सेंटीमीटर व्यास के होते हैं।
पेरीथीसियम (Perithecium)
उद्देश्य (Aim): एसकोमाइकोटा वर्ग के बंद फ्लास्क जैसे फलांग पेरीथीसियम का अध्ययन करना। इसमें बीजाणुओं के प्रवेश-निर्गमन संबंधी संरचनाओं की जाँच की जाएगी।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): नेक्त्रिया (Nectria) या निकोट्रिया (Neurospora) जैसे कवकों की पेरिथीसियम धातुें, स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी, कलरिंग एजेंट।
वर्गीकरण (Classification): पेरीथीसियम अस्कोमाइकोटा के फ्लास्क-सदृश एस्कोकार्प होता है। यह सैकड़ों एससीआई को गोलाकार गुहा में संलग्न करता है और केवल शीर्ष पर एक आरक्षित छिद्र (ostiole) के माध्यम से बीजाणु उत्सर्जित करता है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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पेरीथीसियम एक गेंद या बोतल जैसा बंद फलांग है जिसमें एक छोटे छिद्र (ostiole) द्वारा बाहर कनेक्टिंग पाइप होता है।
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इसके इंटीरियर में लंबी सिलिंड्रिकल (unitunicate) एससीआई जुड़े रहते हैं, जिनमें आमतौर पर आठ एस्कोस्पोर बनते हैं।
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बाहर से दिखने पर यह एक चिकनी या थोड़ी ऊबड़-खाबड़ सतह वाला होता है, अक्सर पंखुड़ी या ब्रश जैसी वृद्धि (periphyses) से घिरा होता है।
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एससीआई के परागकणों का प्रवासन पेरीथीसियम के शीर्ष छिद्र (ostiole) के जरिये होता है। यह संरचना रोगजनक कवकों जैसे एस्कोबुलस, अस्कोबोलस और माइसोटेकिनिया में आम है।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): स्लाइड पर पेरिथीसियम की पोरोसिटी को अध्ययन करने पर सिरों पर एक छोटा छिद्र दिखाई देगा। पेरिथीसियम को रंगने पर ऊर्ध्वाधर एससीआई, छिद्र की ओर मुख किये हुए पाए जाएंगे। इस प्रकार, बीजाणुओं की रिहाई स्वाभाविक रूप से बंद ढक्कन की जगह के माध्यम से होती है।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
पेरीथीसियम आमतौर पर 0.5–2 मिमी व्यास का होता है। इसका बाहरी आवरण (peridium) मोटी जालीदार हाइफा से बना होता है। शीर्ष पर स्थित ऑस्टिओल (छिद्र) के माध्यम से ही अंतरिक्ष में संचित बीजाणु (एसकोस्पोर) बाहर निकलते हैं। अंदर की भीतरी परत एससीआईयों (unitunicate asci) की होती है, जिनके नीचे कुछ सहायक तंतु होते हैं।
ऑस्टिओल (Ostiole)
उद्देश्य (Aim): ऑस्टिओल की संरचना एवं कार्य की जाँच। परिथीसियम और अन्य बंद फलांगों में परागकण निष्कासन में इसकी भूमिका समझना इस प्रयोग का लक्ष्य है।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): परिथीसियम का नमूना, सूक्ष्मदर्शी स्लाइड, कलरिंग एजेंट (लैक्टोफेनॉल ब्लू)।
वर्गीकरण (Classification): ऑस्टिओल स्वयं में कोई जीववर्ग नहीं है, बल्कि पेरीथीसियम सहित बंद एस्कोकार्प (जैसे पेरिथीसियम, स्फेरोथैसियम) में पाया जाने वाला छिद्र संरचना है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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ऑस्टिओल एक छोटा, बंद छिद्र या पाइप जैसा होता है जो फ्लास्क-सदृश पेरिथीसियम के शीर्ष पर स्थित होता है।
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यह आमतौर पर परिधिस (appendages) या पेरिफाइसिस (परिधवा) नामक छोटे तंतु-पुंजों से घिरा हो सकता है।
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बीजाणुओं (एसकोस्पोर) का चयापचय इसी मार्ग से बाहर होता है। बंद पेरिथीसियमों में बीजाणु निकलने के लिए यह ही एकमात्र मार्ग होता है।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): स्लाइड अवलोकन में ऑस्टिओल एक अपेक्षाकृत पतला छिद्र दिखाई देगा। KOH या अन्य विलेय में परीक्षण करने पर ऑस्टिओल का विस्तार हो सकता है और बीजाणु निकलने का मार्ग स्पष्ट होता है। इस प्रयोग से समझ आएगा कि पेरिथीसियम की बंद गुहा में बन रहे बीजाणु केवल इस छिद्र से बाहर आ सकते हैं।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
पेरीथीसियम के शीर्ष पर एक संकुचित नली (ostiole canal) का निर्माण होता है। इस नली के चारों ओर अक्सर छोटे-छोटे रेशेदार परिधवा (paraphyses) होते हैं। ऑस्टिओल के माध्यम से एसकोस्पोर का निकास होता है। आउटपुट नली का व्यास सामान्यतः कुछ माइक्रोमीटर होता है और यह पोरोस सिस्टम बनाता है जिससे बीजाणु बाह्य वातावरण में फैल सकते हैं।
ट्राइकोजाइन (Trichogyne)
उद्देश्य (Aim): अस्कोमाइकोटा कवकों में यौन प्रजनन क्रियाओं के दौरान ट्राइकोजाइन की भूमिका की समीक्षा। विशेषकर Ascogonium और Antheridium के बीच न्यूक्लियर आदान-प्रदान में ट्राइकोजाइन की भागीदारी को देखना।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): Neurospora crassa या अन्य अस्कोमाइकोटा कल्टीवेशन, स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी।
वर्गीकरण (Classification): ट्राइकोजाइन विशिष्ट रूप से अस्कोमाइकोटा कवकों की प्रजनन संबंधी संरचना है। यह महिला जननांग (Ascogonium) से निकला एक सूक्ष्म हाइफ़ा है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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ट्राइकोजाइन एक अत्यंत बारीक उपास्थि (hypha) है जो महिला (ascogonium) जननांग से बाहर निकलती है।
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यह पुरुष जननांग (antheridium) के संपर्क में आने के लिए पात्र होती है और दोनों जननांगों के बीच संपर्क स्थापित करती है।
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ट्राइकोजाइन के माध्यम से पुरुष जननांग के नाभिक महिला जननांग के भीतर प्रविष्ट करते हैं, जिससे प्लाज़्मोगैमी (cytoplasmic fusion) होती है।
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यह प्रक्रिया अस्कोमाइकोटा में युग्मानुक्रमिक अवस्था (dikaryophase) की नींव रखती है, क्योंकि ट्राइकोजाइन से दर्ज न्यूक्लिय जोड़े बनते हैं और विभाजित होते हैं।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): प्रयोग के दौरान ट्राइकोजाइन का अवलोकन मुश्किल हो सकता है क्योंकि यह सूक्ष्म होता है, पर ट्राइकोजाइन के माध्यम से एन्टरिडियम के नाभिकों का प्रवाह ज्ञात किया जा सकता है। पीएसीआर या जीवित कलरिंग से परस्पर नाभिकीय आदान-प्रदान की पुष्टि होती है।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
ट्राइकोजाइन पतली, धागे जैसी हाइफा होती है, जिसका अंत बढ़ने वाला (apex) नर जननांग की ओर मुड़ा होता है। चित्रात्मक दृष्टि से, Ascogonium में से निकलते ट्राइकोजाइन को पुरुष हाइफ़ा के संपर्क में लाते हुए दिखाया जाता है। ट्राइकोजाइन का व्यास बहुत छोटा होता है (लगभग 1–2 माइक्रोमीटर), इसलिए इसे सूक्ष्मदर्शी में विशेष कलरिंग से ही अलग देखा जा सकता है।
एस्कस (Ascus)
उद्देश्य (Aim): अस्कोमाइकोटा में एस्कस की संरचना और बीजाणु उत्पादन की प्रक्रिया का अध्ययन। प्रयोग से यह समझना है कि कैसे अस्कस कोशिका के भीतर युग्मानुक्रमिक बीजाणु बनते हैं।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): Sordaria fimicola या अन्य अस्कोमाइकोटा (जैसे खलनायक Sordaria या Neurospora) की कल्टीवेशन, स्लाइड, कलरिंग एजेंट (एस्कस बीजाणु के लिए विशेष दाग)।
वर्गीकरण (Classification): एस्कस अस्कोमाइकोटा (sac fungi) का एक संक्रामक एवं प्रजनन कैंपस (ascus) है। यह परमुखतः अस्कोमिकोटा कवकों (फफूंदों) में पाया जाता है, विशेषकर कप कवकों (Discomycetes) में।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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एस्कस एक थैलीनुमा (saclike) या नलीनुमा कोशिका होती है जिसमें 4–8 युग्मानुक्रमिक बीजाणु (Ascospores) बनते हैं।
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प्रत्येक एस्कस आमतौर पर दो बार मीयोसिस और एक बार माइटोसिस से होकर गुजरता है, जिससे आठ बीजाणु बनते हैं।
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यह कोशिका आमतौर पर लम्बी-सिलिंड्रिकल होती है और कई एस्कोसपोर्स को समाहित करती है।
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Clap (पट्टीदार) अस्कस वाले कवकों (जैसे Neurospora में) चार बीजाणु होते हैं, जबकि कप कवकों में आठ बीजाणु प्रायः पाए जाते हैं।
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मीयोसिस पूर्व एस्कस में क्रोएसियर्स (croziers) या U-hooks बन सकते हैं, जो युग्मानुक्रमिक नाभिकों के विभाजन और विभाजन में सहायता करते हैं।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): स्लाइड पर एस्कस के कटे दृश्य में एक थैली की तरह संरचना दिखाई देगी, जिसमें आस-पास 4–8 गोल या अंडाकार एस्कोसपोर एक पंक्ति में या समूह में होते हैं। कलरिंग के बाद एस्कस की दीवार और कोष्ठक रूपी विभाजन स्पष्ट हो जाएंगे। प्रयोग से यह पुष्ट होगा कि अस्कस के अंदर युग्मानुक्रमिक विभाजन द्वारा बीजाणु उत्पन्न होते हैं।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
एस्कस अनुदैर्ध्य रूप से लंबी कोशिका होती है, जिसका ऊपर का सिरा अधिक पतला या थोड़ी खुली धक्कन (operculum) जैसा हो सकता है। इसमें बनी एस्कोस्पोर अक्सर उभरी हुई या अन्दर संधारित रहती हैं। एस्कस की दीवार थोड़ी मोटी होती है और कई बार विशेष टिकाऊ सामग्री (जैसे कीटिन) से बनी होती है। क्लिस्टोथेसियम-जैसी बंद संरचनाओं के विपरीत, एस्कस में बीजाणु की रिहाई के लिए अलग विशेष छिद्र या ढक्कन हो सकता है। एस्कस सीधे एस्कोकार्प (क्लोइस्टोथेसियम, एपोथीसियम आदि) की भीतरी तह में रहते हैं।
बेसिडियोस्पोर (Basidiospore)
उद्देश्य (Aim): बेसिडियोमाइकोटा कवकों में बेसिडिओस्पोर्स की संरचना और उत्पत्ति की समीक्षा। विशेषकर मशरूम या जाल कवकों के तलों से स्पोर्स को विभाजित करना।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): Agaricus या अन्य मशरूम का टोपी (gills) हिस्सा, कांच की स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी।
वर्गीकरण (Classification): बेसिडिओस्पोर बैसिडियोमाइकोटा (Basidiomycota) कवकों द्वारा उत्पादित प्रजनन बीजाणु हैं। बैसिडियोमाइकोटा में मशरूम, पटि-कपाथी (polypores), रस्ट कवक (Puccinia) और स्मट कवक शामिल हैं।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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प्रत्येक बेसिडिओस्पोर में एक ही प्लाज्मिक न्यूक्लियस होता है, जो मेयोसिस से उत्पन्न होता है।
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प्रत्येक बैसिडियम (विशेष कोशिका) पर सामान्यतः चार बेसिडिओस्पोर विकसित होते हैं; दो एक प्रकार के जोड़े हो सकते हैं।
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ये आमतौर पर बलिस्टोस्पोर्स (ballistospores) होते हैं, अर्थात् इनमें एक अंतर्गोल कण होता है जिससे स्पोर्स को हवा में छलांग लगाने में मदद मिलती है।
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बेसिडिओस्पोर का आकार अक्सर वृत्ताकार, दीर्घवृत्ताकार या बेलनाकार होता है। इनकी दीवार चिटिन और ग्ल्यूकान से बनी होती है, और परिपक्व होने पर चिकना या चमकदार हो सकती है।
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नमी और रात्रीकाल में ये सक्रिय रूप से छोड़े जाते हैं, जो कवक के फैलाव का प्रमुख माध्यम होते हैं।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): मशरूम की पंखुड़ियों (gills) के पैरों पर चिपके पाउडर जैसे बेसिडिओस्पोर्स बनाएंगे। स्लाइड पर इनकी पंक्तिबद्ध व्यवस्था (चार स्पोर्स प्रति बाह्य कोशिका) साफ़ दिखेगी। कुछ कवकों में (जैसे Puccinia) एकल सेल से भी स्पोर्स बनते हैं।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
बेसिडिओस्पोर आमतौर पर एकल कोशिकीय (non-septate) होते हैं। इनकी सतह पर हिलार (hilar) टैपिकल अपेंडेज़ रहता है, जहाँ से ये बैसिडियम से जुड़े थे। कई बेसिडिओस्पोरों में ऊपर की ओर (apical) अंक या खुलने का छिद्र (germ pore) भी होता है। आकार और मोटाई जातिगत रूप से बदलती है: पेचवर्क वाले बैसिडिओस्पोर आमतौर पर पतले-दीवार वाले, जबकि कठोर स्ट्रक्चर्ड कवकों में मोटी दीवार वाले होते हैं।
एस्कोस्पोर (Ascospore)
उद्देश्य (Aim): अस्कोस्पोर की पहचान और गुणों का अध्ययन करना। यौनप्रजनन के अंतर्गत एसकॉस में बनने वाले बीजाणुओं की संरचना देखना।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): Saccharomyces cerevisiae या Schizosaccharomyces कल्टीवेशन (शरीरे वाली खमीर), स्लाइड, कलरिंग एजेंट (जैसे Kinyoun stain)।
वर्गीकरण (Classification): एस्कोस्पोर विशेषकर अस्कोमाइकोटा में पाया जाता है। यह युग्मानुक्रमिक स्पोर है जो केवल अस्कोमाइसेट कवकों के एस्कस (ascus) में बनता है।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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एस्कोस्पोर कोष्ठक (ascus) के भीतर बनने वाला बीजाणु है। यह आमतौर पर एकल-कोशिकीय, गैर-गतिशील (nonmotile) होता है।
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एक एस्कस में चार या आठ एस्कोस्पोर होते हैं; पेचीदा युग्मण के बाद दो बार मेयोसिस और कभी-कभी एक माइटोसिस विभाजन के परिणामस्वरूप यह संख्या होती है।
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अधिकांश कवकों में एस्कोस्पोर लोहित या रहित रंग के गोल/अंडाकार होते हैं। कुछ मामलों में एसकोस्पोर बहुकोशिकीय या विभाजनशिल (coenocytic) भी हो सकते हैं।
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एस्कोस्पोर की ऊपरी दीवार अक्सर चिटिनयुक्त होती है, जिसे विशेष दागों से देखा जा सकता है। ये ग्राम-नकारात्मक होते हैं (ग्राम-संकेत के बाद लाल) जबकि कवक की जीवंत कोशिकाएँ ग्राम-सकारात्मक (नीली) हो सकती हैं।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): स्लाइड पर अस्कस को देखने पर गोलेदार या अंडाकार बीजाणु दिखाई देंगे। Saccharomyces में प्रति एस्कस 1–4 अस्कोस्पोर होते हैं और ये वार्षिकी नहीं फटते। कलरिंग के बाद एस्कोस्पोर का पिगमेंट और भित्ति स्पष्ट होती है। प्रयोग से यह ज्ञात होगा कि ये बीजाणु विषम कोशिकीय विभाजन से बनते हैं।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
एक एस्कोस्पोर समग्र रूप से गोल या दीर्घवृत्ताकार होता है। इसकी दीवार कठिन, पारभासी होती है और कभी-कभी रंगीन पिगमेंटों से रंगी रहती है (जैसे कुछ कवके Blumeria वंश में)। Saccharomyces में एस्कोस्पोर के एक छोर पर विशेष ग्लाइकोप्रोटीन कोट (बूरलेट tissue) विकसित हो सकती है। एस्कोस्पोर सामान्यतः एकल कोशिकीय होते हैं, पर कुछ कवकों में विभाजनशिल (coenocytic) भी पाए जाते हैं।
गेहूं रोग (Wheat Disease – Rust रोग)
उद्देश्य (Aim): गेहूं में प्रचलित रस्ट (रसायनिक कवकजनित) रोग का अध्ययन करना। विशेषकर कवक Puccinia graminis के जीवन चक्र के विभिन्न चरणों को समझना।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): गेहूं के संक्रमित पत्ते, स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी, कलरिंग एजेंट।
वर्गीकरण (Classification): गेहूं रस्ट रोग का प्रमुख कारक Puccinia graminis है, जो बैसिडियोमाइकोटा (Basidiomycota) में Pucciniales क्रम का कवक है। बैसिडियोमाइकोटा में मशरूम, रस्ट और स्मट कवक शामिल होते हैं। Pucciniales को आमतौर पर “रस्ट कवक” कहा जाता है क्योंकि ये रोगजनक कवक लाल-सेंगी धब्बे बनाते हैं।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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गेहूं के पत्तों और कोंपलों पर लाल-भूरे धब्बे या pustules बनते हैं, जिनमें हजारों स्पोर्स होते हैं। ये pustules स्पंजी या धब्बेदार होते हैं और बारिश/ओस में ऊपरी सतह से स्पोर्स मुक्त करते हैं।
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रस्ट कवक अपने जीवनचक्र में अनेक प्रकार के बीजाणु बनाते हैं – यूरेडियोस्पोर (रोग तेजी से फैलानेवाले), टेलिओस्पोर (ओवरविंटरिंग के लिए व्यासपीठीय) और आवश्यकतानुसार एसकस/बेसिडियोस्पोर अन्य होस्ट में।
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रोगजनक कवक एडजस्टेड युग्मानुक्रम में रहता है, और इसकी कोशिकाएं नियमित युग्मित (dikaryotic) अवस्था में होती हैं जब तक अंतिम बीजाणु नहीं बन जाते।
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गेहूं की रस्ट अक्सर बारबेरी (अल्टरनेट मेज़बान) के साथ पूरा होता है, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में बारबेरी के बिना भी यूरेडियोस्पोर के माध्यम से बीमारी साल-दर-साल बनी रहती है।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): संक्रमित पौधे पर यूरेडिया ( uredinia ) और टेलिया (telia) के अवलोकन से विभिन्न स्पोरोंगिया के निर्माण की पुष्टि होगी। क्लीनिकल अवलोकन से ज्ञात होगा कि यूरेडियोस्पोर रोग को तेजी से फैलाने में सक्षम हैं, जबकि टेलिओस्पोर पर्यावरण में कवक के अस्तित्व को स्थिर रखते हैं। स्लाइड पर यूरेडियोस्पोर और टेलिओस्पोर की उपस्थिति से रस्ट कवक की सम्पूर्ण जीवन-चर्या की व्याख्या संभव होगी।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
रस्ट कवकों की बीजाणुओं की संरचना विशेष होती है: यूरेडियोस्पोर मैट्रिक्स में बने होते हैं और विशिष्ट रूप से लाल-भूरे, कांटेदार (spiny) होते हैं। टेलिओस्पोर भारी, काले, मोटी-दीवार वाले और द्विनाभिकीय (dikaryotic) होते हैं। चित्र में गेहूं की पत्ती पर लाल यूरेडिया स्पष्ट दिखते हैं, जिनमें पीले या भूरे रंग के यूरेडियोस्पोर लिए होते हैं। जब मौसम ठंडा होता है, तो ये यूरेडियोस्पोर क्षय होकर काले टेलिओस्पोर में परिवर्तित हो जाते हैं, जो रस्ट कवक को शीतकालीन परिस्थितियों में भी जीवित रखते हैं।
यूरिडियोस्पोर (Urediniospore)
उद्देश्य (Aim): रस्ट कवकों में यूरेडियोस्पोर की संरचना और भूमिका का अध्ययन करना। विशेषकर गेहूं की रस्ट रोग में यूरेडियोस्पोर का प्रसार-अवस्थाओं में योगदान देखना।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): संक्रमित गेहूं पत्ती से प्राप्त यूरेडिया, स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी, कलरिंग एजेंट (लैक्टोफेनॉल ब्लू)।
वर्गीकरण (Classification): यूरेडियोस्पोर रस्ट कवकों (Puccinia वंश) का अस्थायी पुनरावृत्तिक (repeating) बीजाणु चरण है। ये बैसिडियोमाइकोटा समूह के कवकों में पाए जाते हैं।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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यूरेडियोस्पोर द्विनाभिकीय (नाभिकीय संयुग्मित) होते हैं, जिनमें दो असंयुक्त (unfused) हैंप्रॉइड न्यूक्लियस होते हैं।
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ये गोलाकार या गोल-आकार के स्पाइनी (कांटों वाले) बीजाणु होते हैं और गुलाबी से गहरे भूरे (ब्रिक-रेड) रंग के दिखते हैं।
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यूरेडिया नामक संरचनाओं पर इकठ्ठा होकर ये पतले-दीवार वाले बीजाणु वातावरण में मुक्त होते हैं।
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यूरेडियोस्पोर ही वह केवल बीजाणु होते हैं जो उसी मेज़बान (गेहूं) पर पुनः संक्रमण कर सकते हैं, अर्थात् इनसे संक्रमण एक पौधे से दूसरे में तेजी से फैलता है।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): स्लाइड अवलोकन में यूरेडियोस्पोर की रीढ़दार संरचना और रंगीन दीवार देखें। गैभीकरण परीक्षण से इन बीजाणुओं की सक्रियता की पुष्टि होगी। प्रयोग से मिलेगा कि यूरेडिया से निकलते यूरेडियोस्पोर रोग को चपेट में लेते हैं और महामारी फैलाते हैं।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
यूरेडियोस्पोर सामान्यतः एकल कोशिकीय (no septa) होते हैं। इनकी सतह पर कई छोटी झिल्लीदार कांटे होते हैं, जो उन्हें स्पाइनी बनाते हैं। आकार में ये लगभग गोल होते हैं और इनकी दीवार पतली और लचीली होती है। पराग रंजक परीक्षण से यूरेडियोस्पोर लाल-भूरे दिखते हैं और सूक्ष्मदर्शी में समूहबद्ध वृक्ष की पैटर्न जैसा आशय व्यक्त करते हैं।
टेल्युटोस्पोर (Teliospore)
उद्देश्य (Aim): रस्ट कवकों में टेलिओस्पोर की संरचना और भूमिक का अध्ययन करना। विशेषतः गेहूं के रस्ट रोग में टेलिओस्पोर द्वारा कठिन परिस्थितियों में कवक का संरक्षण।
आवश्यक सामग्री (Required Materials): गेहूं की पत्तियों से प्राप्त टेलिओस्पोर, स्लाइड, सूक्ष्मदर्शी, कलरिंग एजेंट।
वर्गीकरण (Classification): टेलिओस्पोर भी रस्ट कवकों (Puccinia) के पुनरावृत्तिक चक्र का हिस्सा हैं। यह बैसिडियोमाइकोटा कवकों के बीजाणु होते हैं जो जिदी ढाल (dikaryotic stage) में बनते हैं।
लक्षण / विशेषताएँ (Characteristics):
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टेलिओस्पोर मोटी-दीवार वाले, काले रंग के बीजाणु होते हैं। ये द्विनाभिकीय होते हैं; इनमें दोनों नाभिक विलय से पहले होते हैं।
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टेलिओस्पोर टेलिया नामक संरचनाओं में कई का समूह बनाते हैं। ये रस्ट कवक को ठंड और गर्मी की विपरीत परिस्थितियों से बचाने वाले आरामदायी (resting) चरण होते हैं।
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टेलिओस्पोर पर थिक एनलिंग होती है, जिससे ये कठोर और दीर्घायु हो जाते हैं। वसंत ऋतु में ये क्रियाशील हो जाते हैं और मेयोसिस पूरा करके बैसिडियोस्पोर बनाते हैं।
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बैरबेरी या अन्य रस्ट कॉम्पलीट लाइफ-साइकल परिक्षेत्र पर इनसे रंगहीन (ट्राइसिपोर) बैसिडियोस्पोर बनते हैं, जो पौधे पर नए संक्रमण शुरू करते हैं।
परिणाम / निष्कर्ष (Result): स्लाइड पर टेलिओस्पोर मोटे, काले दिखेंगे। पड़ोसी यूरेडियोस्पोर से भिन्न रूप से ये बंद संरचना के कारण कम गतिशील होते हैं। कलरिंग के बाद इनकी मोटी दीवार स्पष्ट दिखाई देगी। प्रयोग से यह ज्ञात होगा कि टेलिओस्पोर रस्ट कवक का स्थायी बीजाणु है, जो कठिन परिस्थितियों में कवक को सुरक्षित रखता है।
संरचना / आकृति का वर्णन (Structure):
टेलिओस्पोर आमतौर पर लंबवत बटी हुए (two-celled) होते हैं, जिनकी दीवारें कठोर और मोटी होती हैं। इनमें अतंर्गत दो न्यूक्लियस विलय-पूर्व अवस्था में रहते हैं। पृष्ठ पर ठोस अनुक्रम में जमावट दिखाते हैं और इनकी दीवारें डार्क ब्राउन या काली रंग की होती हैं। स्लाइड में इन स्पोर्स पर मोटी एपीकोर्पियम दिखाई देगा, जिसके कारण ये आसानी से टूटते नहीं। टेलिओस्पोर की यह संरचना कवक को सूखे और शीत के खिलाफ प्रतिरोधी बनाती है।
स्रोत: इस प्रायोगिक लेख में दी गई जानकारी आधुनिक मायकोरिलॉजी स्त्रोतों जैसे Encyclopaedia Britannica, Wikipedia, तथा Mycology संबंधी शैक्षणिक वेबसाइटों से संकलित और उद्धृत की गई है।
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