बुधवार, 26 मार्च 2025

all Unit Short Note | 2nd sem miner chemistry| 2025

Unit 1: प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों का रसायन विज्ञान में योगदान

प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों ने रसायन विज्ञान (Chemistry) के कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था, विशेष रूप से धातुकर्म (Metallurgy), रंग और रंगद्रव्य (Dyes and Pigments), सौंदर्य प्रसाधन (Cosmetics) और आयुर्वेद (Ayurveda) के क्षेत्र में।

1. धातुकर्म (Metallurgy) में योगदान

  • प्राचीन भारत में धातुओं का निष्कर्षण और परिष्करण (Extraction and Refining of Metals)
    • तांबे (Copper), कांस्य (Bronze), लौह (Iron), सोने (Gold), चांदी (Silver) और पारे (Mercury) का निष्कर्षण और शुद्धिकरण प्राचीन काल से किया जाता रहा है।
    • दिल्ली का लौह स्तंभ (Iron Pillar of Delhi), जो 1600 वर्षों से अधिक पुराना है और अभी भी जंग-रहित है, भारतीय धातुकर्म की श्रेष्ठता को दर्शाता है।
    • नागार्जुन (9वीं शताब्दी) ने "रस रत्नाकर" ग्रंथ लिखा, जिसमें धातुओं और रसायनों के उपयोग का विस्तृत वर्णन है।
    • वराहमिहिर ने अपनी रचनाओं में धातुओं के गुणों पर प्रकाश डाला।

2. रंग और रंगद्रव्य (Dyes and Pigments)

  • प्राचीन भारत में प्राकृतिक रंगों का उपयोग कपड़ों और दीवारों को रंगने के लिए किया जाता था।
  • हल्दी (Turmeric), नील (Indigo), कत्था (Catechu) और केसर (Saffron) जैसे प्राकृतिक स्रोतों से रंग बनाए जाते थे।
  • अजन्ता और एलोरा की गुफाओं की पेंटिंग्स दर्शाती हैं कि भारतीय वैज्ञानिकों को रंगों की स्थायित्व (Durability) की जानकारी थी।

3. सौंदर्य प्रसाधन (Cosmetics)

  • भारतीय महिलाएं प्राकृतिक सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग करती थीं, जैसे कि उबटन (Herbal Face Pack), काजल (Kohl), मेंहदी (Henna) और इत्र (Perfume)।
  • सुश्रुत संहिता और चरक संहिता में त्वचा की देखभाल और सौंदर्य प्रसाधनों का वर्णन किया गया है।
  • भस्म (Ash) और औषधीय जड़ी-बूटियों से त्वचा और बालों की देखभाल के लिए उत्पाद तैयार किए जाते थे।

4. आयुर्वेद और चरक संहिता में रसायन विज्ञान

  • चरक संहिता (Charaka Samhita) आयुर्वेद का एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें रसायन विज्ञान और औषधि विज्ञान (Pharmaceutical Chemistry) का विस्तृत वर्णन है।
  • रसशास्त्र (Alchemy) में पारे (Mercury) और अन्य धातुओं का औषधीय उपयोग बताया गया है।
  • सुश्रुत संहिता में शल्य चिकित्सा (Surgery) और औषधियों के निर्माण की विधियाँ दी गई हैं।

मूल कार्बनिक रसायन (Basics of Organic Chemistry)

1. कार्बनिक यौगिकों का वर्गीकरण और नामकरण (Classification and Nomenclature of Organic Compounds)

कार्बनिक यौगिकों को उनके संरचनात्मक गुणों के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जाता है, जैसे:

  • ऐल्केन (Alkanes)
  • ऐल्कीन (Alkenes)
  • ऐल्काइन (Alkynes)
  • ऐरोमैटिक यौगिक (Aromatic Compounds)

इनका नामकरण अंतर्राष्ट्रीय संघटन रसायन (IUPAC) प्रणाली के अनुसार किया जाता है।


2. संकरण (Hybridization) और अणुओं की आकृति (Shapes of Molecules)

  • संकरण (Hybridization) परमाणुओं के ऑर्बिटल्स के आपसी मिलन से नए ऑर्बिटल्स का निर्माण है।
  • प्रमुख संकरण प्रकार:
    • sp³ संकरण - टेट्राहेड्रल (Tetrahedral) आकृति (उदाहरण: मीथेन - CH₄)
    • sp² संकरण - त्रिकोणीय समतलीय (Trigonal Planar) आकृति (उदाहरण: एथीन - C₂H₄)
    • sp संकरण - रैखिक (Linear) आकृति (उदाहरण: एथाइन - C₂H₂)

संकरण का प्रभाव बंध की लंबाई और ऊर्जा पर पड़ता है।


3. इलेक्ट्रॉनिक विस्थापन प्रभाव (Electronic Displacements Effects)

कार्बनिक यौगिकों में इलेक्ट्रॉनों के वितरण को प्रभावित करने वाले प्रमुख प्रभाव निम्नलिखित हैं:

  • इलेक्ट्रोमेरिक प्रभाव (Electromeric Effect)
    • जब इलेक्ट्रॉन किसी कार्बनिक यौगिक में पूरी तरह से स्थानांतरित हो जाते हैं।
  • अनुनाद और मेसोमेरिक प्रभाव (Resonance and Mesomeric Effect)
    • एक अणु में इलेक्ट्रॉनों का पुनर्वितरण, जिससे संरचनात्मक स्थिरता बढ़ती है।
  • हाइपरसंयुग्मन प्रभाव (Hyperconjugation Effect)
    • यह बंधों की स्थिरता को प्रभावित करता है और कार्बोकैटायन की स्थिरता में योगदान देता है।

4. कार्बनिक अम्ल और क्षार (Organic Acids and Bases) एवं उनकी सापेक्ष शक्ति

  • कार्बनिक अम्ल (Organic Acids) प्रोटॉन (H⁺) दाता होते हैं (जैसे एसीटिक अम्ल - CH₃COOH)।
  • कार्बनिक क्षार (Organic Bases) प्रोटॉन ग्राही होते हैं (जैसे एनिलीन - C₆H₅NH₂)।
  • अम्लता और क्षारता को इलेक्ट्रॉन-प्राप्ति और त्याग की प्रवृत्ति से मापा जाता है।

5. सममितीय और विषमीय विच्छेदन (Homolytic and Heterolytic Fission) एवं उनके उदाहरण

  • सममितीय विच्छेदन (Homolytic Fission):

    • जब एक बंध समान रूप से टूटता है और दोनों भागों में समान संख्या में इलेक्ट्रॉन जाते हैं।
    • इससे मुक्त मूलक (Free Radicals) बनते हैं।
  • विषमीय विच्छेदन (Heterolytic Fission):

    • जब एक बंध टूटता है और एक भाग पूरे इलेक्ट्रॉन ग्रहण कर लेता है।
    • इससे कार्बोकैटायन (Carbocation) और कार्बेनियन (Carbanion) बनते हैं।

6. कार्बनिक अभिक्रियाएँ और उनके अभिक्रिया तंत्र (Organic Reactions and Their Mechanism)

कार्बनिक रसायन में प्रमुख अभिक्रियाएँ निम्नलिखित हैं:

  1. संयोजन (Addition Reactions)

    • यह अभिक्रिया अपूर्ण संतृप्त यौगिकों (Alkenes, Alkynes) में होती है।
    • उदाहरण: एथीन में हाइड्रोजन का योग (H₂ + C₂H₄ → C₂H₆)।
  2. उन्मूलन (Elimination Reactions)

    • इस अभिक्रिया में एक अणु से छोटे अणुओं (जैसे H₂O, HCl) को निकाला जाता है।
    • उदाहरण: ऐल्कोहल से ऐल्कीन का निर्माण।
  3. प्रतिस्थापन (Substitution Reactions)

    • जब एक परमाणु या समूह किसी अन्य परमाणु से प्रतिस्थापित हो जाता है।
    • उदाहरण: क्लोरीन गैस द्वारा मिथेन का प्रतिस्थापन (CH₄ + Cl₂ → CH₃Cl + HCl)।

निष्कर्ष

प्राचीन भारतीय वैज्ञानिकों ने रसायन विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान दिया, विशेष रूप से धातुकर्म, रंग, सौंदर्य प्रसाधन और आयुर्वेद में। वहीं, कार्बनिक रसायन में हाइब्रिडाइजेशन, इलेक्ट्रॉनिक प्रभाव, कार्बनिक अम्ल-क्षार और अभिक्रियाएँ महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।


Unit 2: स्थिररसायन (Stereochemistry)

स्थिररसायन (Stereochemistry) रसायन विज्ञान की वह शाखा है, जो अणुओं की त्रिविमीय (Three-Dimensional) संरचना और उनके रासायनिक एवं भौतिक गुणों पर इसके प्रभाव का अध्ययन करती है। इसमें समरूपता (Symmetry), समावयवता (Isomerism), रोटेशनल स्वतंत्रता और आणविक विन्यास (Molecular Configuration) जैसी अवधारणाएँ शामिल होती हैं।


1. विषमता (Asymmetry) की अवधारणा

  • किसी अणु में यदि एक ऐसा कार्बन परमाणु उपस्थित हो, जो चार विभिन्न समूहों से जुड़ा हो, तो वह विषम (Asymmetric) कहलाता है।
  • ऐसे अणु प्रकाशीय सक्रिय (Optically Active) होते हैं और इनमें सममिति (Symmetry) नहीं होती।
  • उदाहरण: 2-ब्रोमोब्यूटेन (2-Bromobutane) जिसमें एक विषम कार्बन (Chiral Carbon) होता है।

2. स्थिररासायनिक संरचना को प्रदर्शित करने की विधियाँ

(a) फिशर प्रक्षेपण (Fischer Projection)

  • इसे हेरमान एमिल फिशर (Hermann Emil Fischer) ने विकसित किया था।
  • यह द्विविमीय (2D) संरचना होती है जिसमें ऊर्ध्वाधर रेखाएँ पीछे और क्षैतिज रेखाएँ आगे की ओर संकेत करती हैं।
  • सामान्यतः कार्बोहाइड्रेट और अमीनो अम्लों (Amino Acids) को प्रदर्शित करने के लिए प्रयुक्त होता है।

(b) न्यूमैन प्रक्षेपण (Newman Projection)

  • इसमें अणु को एक विशिष्ट दिशा से देखा जाता है ताकि दो कार्बन परमाणुओं के बीच बंधों की स्थिति समझी जा सके।
  • यह घूर्णन (Rotation) और संक्रियात्मकता (Reactivity) का अध्ययन करने में सहायक होता है।

(c) सॉहॉर्स प्रक्षेपण (Sawhorse Projection)

  • इसमें कार्बन-कार्बन बंध को तिरछा करके दर्शाया जाता है जिससे बंधों और समूहों की स्थिति स्पष्ट होती है।
  • यह न्यूमैन प्रक्षेपण का ही एक विस्तारित रूप है।

(d) विभिन्न प्रक्षेपणों का आपसी रूपांतरण (Interconversions)

  • फिशर से न्यूमैन: फिशर प्रक्षेपण को घुमाकर न्यूमैन संरचना में बदला जा सकता है।
  • न्यूमैन से सॉहॉर्स: न्यूमैन संरचना को हल्का झुका देने से सॉहॉर्स संरचना प्राप्त होती है।

3. ज्यामितीय समावयवता (Geometrical Isomerism)

  • यह समावयवता कार्बनिक यौगिकों में दोहरे बंध (C=C) और चक्रीय संरचनाओं (Cyclic Structures) में देखी जाती है।
  • इसमें बंध घूर्णन (Bond Rotation) संभव नहीं होता, जिससे विभिन्न अवस्थाएँ बनती हैं।

(a) सिस-ट्रांस समावयवता (Cis-Trans Isomerism)

  • सिस (Cis): जब समान समूह दोहरे बंध के एक ही तरफ होते हैं।
  • ट्रांस (Trans): जब समान समूह दोहरे बंध के विपरीत दिशा में होते हैं।
  • उदाहरण: ब्यूट-2-ईन (But-2-ene)

(b) सिन-एंटी समावयवता (Syn-Anti Isomerism)

  • इसमें यौगिकों के संरचनात्मक अभिविन्यास (Structural Orientation) पर आधारित समावयवता होती है।
  • सिन (Syn) और एंटी (Anti) स्थितियाँ परमाणुओं के स्थिति निर्धारण से बनती हैं।

(c) E/Z नामकरण और C.I.P. नियम (E/Z Notation & Cahn-Ingold-Prelog Rules)

  • यदि उच्च प्राथमिकता वाले समूह दोहरे बंध के एक ही दिशा में हों, तो Z (Zusammen - साथ में) संकेतन किया जाता है।
  • यदि उच्च प्राथमिकता वाले समूह विपरीत दिशाओं में हों, तो E (Entgegen - विपरीत) संकेतन किया जाता है।
  • प्राथमिकता निर्धारण Cahn-Ingold-Prelog (C.I.P.) नियमों के अनुसार किया जाता है।

4. प्रकाशीय समावयवता (Optical Isomerism)

  • जब कोई यौगिक सममिति-विहीन होता है और ध्रुवीकृत प्रकाश (Plane-Polarized Light) को दाएँ या बाएँ घुमा सकता है, तो इसे प्रकाशीय समावयवता कहते हैं।

(a) प्रकाशीय सक्रियता (Optical Activity)

  • जो यौगिक प्रकाश को घुमा सकते हैं, वे प्रकाशीय सक्रिय (Optically Active) होते हैं।
  • यदि प्रकाश को दाएँ घुमाते हैं, तो इसे डेक्सट्रोरोटेटरी (Dextro, +) और यदि बाएँ घुमाते हैं, तो लीवोरोटेटरी (Levo, -) कहते हैं।

(b) विशिष्ट घूर्णन (Specific Rotation)

  • प्रकाश के घूर्णन की मात्रात्मक माप होती है, जिसे निम्नलिखित सूत्र से निकाला जाता है:

  [\alpha] = \frac{\alpha}{l \times c}

जहाँ,
= अवलोकित घूर्णन (Observed Rotation)
= नली की लंबाई (Tube Length in dm)
= सांद्रता (Concentration in g/mL)

(c) किरैलिटी (Chirality) / विषमता (Asymmetry)

  • यदि किसी यौगिक में एक किरल केंद्र (Chiral Center) उपस्थित हो, तो वह असममित होता है।
  • किरल यौगिकों की प्रतिबिंब छवि (Mirror Image) उस पर आरोपित (Superimpose) नहीं की जा सकती।

(d) एंटिओमर्स (Enantiomers)

  • ये यौगिक एक-दूसरे की प्रतिबिंब छवियाँ होते हैं लेकिन आपस में आरोपित नहीं किए जा सकते।

(e) दो या अधिक किरल केंद्र वाले अणु (Molecules with Two or More Chiral Centers)

  • जब अणु में एक से अधिक किरल केंद्र होते हैं, तो अधिक प्रकार की समावयवता उत्पन्न होती है।

(f) डायस्टिरियोमर्स (Diastereomers)

  • वे यौगिक जो न तो एंटिओमर्स होते हैं और न ही एक-दूसरे की प्रतिबिंब छवियाँ होते हैं।

(g) मेसो यौगिक (Meso Compounds)

  • जब कोई अणु आंतरिक सममिति तल (Internal Plane of Symmetry) रखता है और प्रकाशीय रूप से निष्क्रिय होता है।

(h) रेसमिक मिश्रण (Racemic Mixture)

  • जब 50% D-आकार और 50% L-आकार का मिश्रण होता है, तो यह प्रकाश को नहीं घुमाता और इसे रेसमिक मिश्रण कहते हैं।

5. सापेक्ष और पूर्ण विन्यास (Relative and Absolute Configuration)

(a) D/L संकेतन (D/L Notation)

  • यह कार्बोहाइड्रेट और अमीनो अम्लों के लिए उपयोग किया जाता है।
  • D-आकार: जब अंतिम किरल केंद्र का OH समूह दाएँ हो।
  • L-आकार: जब अंतिम किरल केंद्र का OH समूह बाएँ हो।

(b) R/S संकेतन (R/S Notation)

  • C.I.P. नियमों के अनुसार उच्च प्राथमिकता वाले समूहों के क्रम को देखते हुए घड़ी की दिशा (Clockwise) में घुमने वाले को R (Rectus - Right) और वामावर्त (Anticlockwise) को S (Sinister - Left) कहते हैं।

निष्कर्ष

स्थिररसायन अणुओं की त्रिविमीय संरचना और उनके रासायनिक एवं भौतिक गुणों के प्रभाव को समझने में सहायक होती है। इसमें समावयवता, ज्यामितीय और प्रकाशीय समावयवता के सिद्धांत, तथा D/L और R/S संकेतन महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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