मंगलवार, 14 जनवरी 2025

UNIT 3। तत्वों की आवर्तिता । Chemistry। BSc 1St Sem । FutureEduCareer blogspot । Blogspot । NOTE । Periodicity of Elements

Unit 3 । Chemistry। BSc 1St Sem। Note ।
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तत्वों की आवर्तिता (Periodicity of Elements)

आवर्तता (Periodicity) का तात्पर्य तत्वों के भौतिक और रासायनिक गुणों में एक निश्चित क्रमिकता या आवर्ती प्रवृत्ति से है। यह आवर्त सारणी में तत्वों की स्थिति और उनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर होती है।

s, p, d, f ब्लॉक तत्व

1. s-ब्लॉक तत्व:
स्थिति: आवर्त सारणी के बाईं ओर।

तत्व: इनमें पहले और दूसरे समूह के तत्व शामिल हैं, जैसे हाइड्रोजन, लिथियम, सोडियम (Group 1 - क्षार धातुएं), और बेरिलियम, मैग्नीशियम, कैल्शियम (Group 2 - क्षारीय मृदा धातुएं)।

विशेषता:
० बाहरी कक्षा में केवल -उपकक्षा में इलेक्ट्रॉन होते हैं।
० अत्यधिक प्रतिक्रियाशील।
० धात्विक गुण प्रबल।
० ऑक्साइड और हाइड्रॉक्साइड क्षारीय होते हैं।

2. p-ब्लॉक तत्व:
स्थिति: आवर्त सारणी के दाईं ओर।

तत्व: इनमें 13 से 18 समूह के तत्व शामिल हैं, जैसे बोरॉन, कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फ्लोरीन, और नोबेल गैसें।

विशेषता:
० बाहरी कक्षा में -उपकक्षा में इलेक्ट्रॉन।
० धातु, अधातु और उपधातु सभी प्रकार के तत्व होते हैं।
० इनके यौगिकों में विविधता पाई जाती है।
० समूह 18 के तत्व निष्क्रिय गैसें कहलाते हैं।

3. d-ब्लॉक तत्व:
स्थिति: आवर्त सारणी के बीच में।

तत्व: इन्हें संक्रमण धातुएं कहा जाता है, जैसे आयरन, कोबाल्ट, निकल।

विशेषता:
० बाहरी कक्षा में -उपकक्षा में इलेक्ट्रॉन।
० उच्च घनत्व और गलनांक।
० रंगीन यौगिक बनाते हैं।
० विविध ऑक्सीकरण अवस्थाएं।

4. f-ब्लॉक तत्व:
स्थिति: आवर्त सारणी के नीचे।

तत्व: इनमें लैंथेनाइड और ऐक्टिनाइड श्रेणी के तत्व शामिल हैं।

विशेषता:

० बाहरी कक्षा में -उपकक्षा में इलेक्ट्रॉन।
० रेडियोधर्मी गुण।
इनका उपयोग मुख्यतः परमाणु और चिकित्सा क्षेत्र में होता है।
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आवर्त सारणी का लंबा रूप

आवर्त सारणी का आधुनिक स्वरूप लंबा है जिसमें 7 आवर्त (Periods) और 18 समूह (Groups) हैं।

इसमें तत्वों को उनके आणविक क्रमांक और इलेक्ट्रॉनिक विन्यास के आधार पर व्यवस्थित किया गया है।

लंबा स्वरूप तत्वों के रासायनिक और भौतिक गुणों की स्पष्टता को दर्शाता है।
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s और p-ब्लॉक तत्वों के संदर्भ में गुणों की विस्तृत चर्चा

1. प्रभावी परमाणु आवेश (Effective Nuclear Charge):

परिभाषा: यह नाभिक का वह आवेश है जो बाहरी इलेक्ट्रॉनों पर प्रभाव डालता है।

s और p-ब्लॉक:

० प्रभावी परमाणु आवेश आवर्त में बाएँ से दाएँ बढ़ता है।
० समूह में ऊपर से नीचे घटता है।

2. परमाणु त्रिज्या (Atomic Radii):

परिभाषा: परमाणु के केंद्र और सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन के बीच की दूरी।

s और p-ब्लॉक:

० आवर्त में बाएँ से दाएँ परमाणु त्रिज्या घटती है।
० समूह में ऊपर से नीचे बढ़ती है।

3. आयनिक त्रिज्या (Ionic radius):

परिभाषा: आयन के आकार को मापने वाली त्रिज्या।

s और p-ब्लॉक:

० धनायन का आकार मूल परमाणु से छोटा।
० ऋणायन का आकार मूल परमाणु से बड़ा।

4. आयनीकरण ऊर्जा (Ionization Energy):

परिभाषा: परमाणु से इलेक्ट्रॉन हटाने के लिए आवश्यक ऊर्जा।

s और p-ब्लॉक:

० आवर्त में बाएँ से दाएँ आयनीकरण ऊर्जा बढ़ती है।
० समूह में ऊपर से नीचे घटती है।

5. इलेक्ट्रॉन अभिग्रहण एंथैल्पी (Electron Gain Enthalpy):

परिभाषा: एक इलेक्ट्रॉन को जोड़ने पर उत्सर्जित या अवशोषित ऊर्जा।

s और p-ब्लॉक:

० आवर्त में बाएँ से दाएँ बढ़ती है।
० समूह में ऊपर से नीचे घटती है।

6. विद्युत ऋणात्मकता (Electronegativity):

परिभाषा: परमाणु की अपने युग्मित इलेक्ट्रॉन को आकर्षित करने की क्षमता।

s और p-ब्लॉक:

० आवर्त में बाएँ से दाएँ बढ़ती है।
० समूह में ऊपर से नीचे घटती है।
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s और p-ब्लॉक तत्वों के महत्वपूर्ण गुण

s-ब्लॉक तत्वों के गुण:

1. अत्यधिक प्रतिक्रियाशील।
2. आयनिक यौगिक बनाते हैं।
3. कम आयनीकरण ऊर्जा।
4. उच्च विद्युत और ऊष्मा चालकता।

p-ब्लॉक तत्वों के गुण:

1. भौतिक और रासायनिक गुणों में विविधता।
2. अधातु, धातु और उपधातु सभी प्रकार के तत्व।
3. अधिक आयनीकरण ऊर्जा।
4. यौगिक रंगीन और विविध।
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यह विस्तृत चर्चा s और p-ब्लॉक तत्वों की आवर्तिता और उनके गुणों को दर्शाती है।
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प्रभावी नाभिकीय आवेश (Effective Nuclear Charge)

परिभाषा:

प्रभावी नाभिकीय आवेश उस आवेश को कहते हैं जो किसी परमाणु के नाभिक द्वारा बाहरी कक्षाओं के इलेक्ट्रॉनों पर डाला जाता है। वास्तविक नाभिकीय आवेश को आंतरिक इलेक्ट्रॉनों द्वारा परिरक्षित (shielded) किया जाता है, जिससे बाहरी इलेक्ट्रॉनों पर प्रभाव कम हो जाता है।

सूत्र:       Zeff = Z - S

Z : परमाणु संख्या (नाभिकीय आवेश)।

S : परिरक्षण स्थिरांक (screening constant)।
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परिरक्षण या स्क्रीनिंग प्रभाव (Shielding or Screening Effect)

परिभाषा:

परिरक्षण प्रभाव वह प्रक्रिया है जिसमें आंतरिक कक्षाओं के इलेक्ट्रॉन बाहरी कक्षाओं के इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय आकर्षण को कम कर देते हैं।

कारण:

1. नाभिक के पास स्थित इलेक्ट्रॉन, बाहरी इलेक्ट्रॉनों को नाभिकीय आवेश से ढक लेते हैं।
2. नतीजतन, बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से कम आकर्षित होते हैं।

परिणाम:
० बाहरी इलेक्ट्रॉनों पर कम प्रभावी नाभिकीय आवेश       होता है।
० परिरक्षण प्रभाव s > p > d > f- उपकक्षाओं में           अलग-अलग होता है।

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स्लेटर के नियम (Slater's Rules):

स्लेटर ने (परिरक्षण स्थिरांक) को गणना करने के लिए कुछ नियम बनाए हैं। इन नियमों का उपयोग प्रभावी नाभिकीय आवेश (Zeff) की गणना के लिए होता है।

स्लेटर नियम:

1. इलेक्ट्रॉनों का विभाजन:
सभी इलेक्ट्रॉनों को उनके ऊर्जा स्तरों और उपकक्षाओं में विभाजित करें:
० 1s
० 2s, 2p, 
० 3s, 3p, 3d
० 4s, 4p, 4d, 4f  और आगे।

2. गणना के नियम:
(a) जिस इलेक्ट्रॉन के लिए परिरक्षण स्थिरांक गणना करनी है, उसे छोड़कर:

० उसी समूह (n):
प्रत्येक इलेक्ट्रॉन का योगदान 0.35  होता है।
(यदि n= 1 , तो 0.30 )।

० एक कम ऊर्जा स्तर (n-1):
प्रत्येक इलेक्ट्रॉन का योगदान होता है।

० दो या अधिक कम ऊर्जा स्तर (n-2 या उससे कम):
प्रत्येक इलेक्ट्रॉन का योगदान 1.00 होता है।

उदाहरण:
हाइड्रोजन (Z= 1) में:

Zeff = Z - S = 1 - 0 = 1
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आवर्त सारणी में प्रभावी नाभिकीय आवेश में परिवर्तन

1. आवर्त में बाएँ से दाएँ:
० बढ़ता है।
० कारण: नाभिकीय आवेश (Z) बढ़ता है, लेकिन परिरक्षण प्रभाव लगभग समान रहता है।

उदाहरण:
लिथियम (Zeff = 1.30)
फ्लोरीन (Zeff = 4.00)

2. समूह में ऊपर से नीचे:

 ० Zeff थोड़ा बढ़ता है।
 ० कारण:

(a) नाभिकीय आवेश (Z) बढ़ता है।
(b) लेकिन आंतरिक कक्षाओं के इलेक्ट्रॉनों की संख्या अधिक होने के कारण परिरक्षण प्रभाव (S) भी बढ़ता है।
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प्रभावी नाभिकीय आवेश के परिणाम

1. परमाणु आकार पर प्रभाव:
  Zeff बढ़ने से परमाणु आकार घटता है।

2. आयनीकरण ऊर्जा पर प्रभाव:
 अधिक Zeff होने से आयनीकरण ऊर्जा बढ़ती है।

3. रासायनिक प्रतिक्रिया पर प्रभाव:
 अधिक Zeff  वाले तत्वों में उच्च विद्युत ऋणात्मकता  और प्रतिक्रियाशीलता होती है।

यहाँ पर , परिरक्षण प्रभाव और स्लेटर नियम के महत्व को समझने के साथ-साथ आवर्त सारणी में इनके परिवर्तन और गुणों पर प्रभाव को विस्तार से समझाया गया है।

          परमाणु त्रिज्या (Atomic Radii)                 

परिभाषा:
परमाणु त्रिज्या वह दूरी है जो किसी परमाणु के नाभिक के केंद्र से उसकी सबसे बाहरी कक्षा (valence shell) में स्थित इलेक्ट्रॉन तक होती है। यह परमाणु के आकार को दर्शाने का एक महत्वपूर्ण उपाय है।

विभिन्न प्रकार की परमाणु त्रिज्या:

1. कोवेलेन्ट त्रिज्या (Covalent Radius):

सहसंयोजी बंध से जुड़े दो परमाणुओं के नाभिकों के बीच की दूरी का आधा भाग।

उदाहरण: Cl2 अणु में  Cl — Cl बंध की लंबाई 198 pm है,तो कोवेलेन्ट त्रिज्या 198/2 = 99 pm

2. धात्विक त्रिज्या (Metallic Radius):

० धातु के ठोस रूप में दो समीपवर्ती परमाणुओं के           नाभिकों के बीच की दूरी का आधा भाग।

3. आयनिक त्रिज्या (Ionic Radius):

० धनायन और ऋणायन के आकार को दर्शाने के लिए       उपयोग की जाती है।
० धनायन का आकार मूल परमाणु से छोटा होता है।
० ऋणायन का आकार मूल परमाणु से बड़ा होता है।

4. वान डेर वाल्स त्रिज्या (Van der Waals Radius):

परिभाषा:
यह वह त्रिज्या है जो परमाणु के सबसे बाहरी सीमा तक फैले इलेक्ट्रॉनों का प्रतिनिधित्व करता है। यह दो गैर-बंधित परमाणुओं के बीच न्यूनतम दूरी के आधे के रूप में मापा जाता है।

विशेषता:

० वान डेर वाल्स त्रिज्या, कोवेलेन्ट त्रिज्या से अधिक         होती है।
० यह उन परमाणुओं के बीच होता है जो एक-दूसरे से       केवल वान डेर वाल्स बलों द्वारा जुड़े होते हैं।

उदाहरण:

हेलियम का वान डेर वाल्स 140 pm त्रिज्या है।
नियोन का वान डेर वाल्स 154 pm त्रिज्या है।
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आवर्त सारणी में परमाणु त्रिज्या का परिवर्तन

1. आवर्त में बाएँ से दाएँ:
० परमाणु त्रिज्या घटती है।

कारण:

० परमाणु संख्या (Z) बढ़ने से नाभिकीय आवेश बढ़ता है।
० प्रभावी नाभिकीय आवेश (Zeff) बढ़ने से इलेक्ट्रॉन नाभिक के पास खींचे जाते हैं।

2. समूह में ऊपर से नीचे:
० परमाणु त्रिज्या बढ़ती है।

कारण:

० नए ऊर्जा स्तर जुड़ने से बाहरी कक्षा की दूरी बढ़ती है।

० परिरक्षण प्रभाव (shielding effect) बढ़ने से बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से कम आकर्षित होते हैं।

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वान डेर वाल्स त्रिज्या का महत्व

1. अंतर-अणुक बलों का मापन:

० वान डेर वाल्स त्रिज्या का उपयोग यह समझने के लिए किया जाता है कि अणुओं के बीच अंतर-अणुक बल (intermolecular forces) कितने मजबूत या कमजोर हैं।

2. अणु के आकार का निर्धारण:

० यह अणु के वास्तविक आकार और उसकी सीमा को मापने में सहायक है।

3. पिघलने और उबलने के बिंदु पर प्रभाव:

० जिन परमाणुओं की वान डेर वाल्स त्रिज्या अधिक होती है, उनके बीच आकर्षण बल कमजोर होता है।

० इसका पिघलने और उबलने के बिंदु पर प्रभाव पड़ता है।

महत्वपूर्ण उदाहरण और मानक (Van der Waals Radii in pm):

वान डेर वाल्स त्रिज्या परमाणु के बाहरी इलेक्ट्रॉनों की सीमा को दर्शाती है और इसका उपयोग परमाणुओं के बीच गैर-बंधन संबंधों के अध्ययन में किया जाता है। यह परमाणु के आकार, रासायनिक प्रतिक्रियाओं, और भौतिक गुणों को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
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आयोनिक और क्रिस्टलीय त्रिज्या (Ionic and Crystal Radii)

1. आयोनिक त्रिज्या (Ionic Radius):

परिभाषा:
आयोनिक त्रिज्या वह दूरी है जो एक आयन के केंद्र से उसकी सबसे बाहरी इलेक्ट्रॉन परत तक होती है। यह धनायन (cation) और ऋणायन (anion) के आकार को मापने का मानक है।

आयोनिक त्रिज्या पर प्रभाव डालने वाले कारक:

1. आयनों का आवेश (Charge of Ion):

० धनायन (+) का आकार मूल परमाणु से छोटा होता है क्योंकि इलेक्ट्रॉन खोने से प्रभावी नाभिकीय आवेश (Zeff) बढ़ता है, और इलेक्ट्रॉन नाभिक के पास खींचे जाते हैं।

> उदाहरण: Na > Na+

० ऋणायन (-) का आकार मूल परमाणु से बड़ा होता है क्योंकि अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन परस्पर विकर्षण बढ़ाते हैं और नाभिकीय आकर्षण घटता है।

> उदाहरण:  Cl < Cl–

2. परमाणु संख्या (Atomic Number):

एक ही समूह में, जैसे-जैसे नीचे जाते हैं, आयोनिक त्रिज्या बढ़ती है।

कारण: नये ऊर्जा स्तर जुड़ने से बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से अधिक दूरी पर होते हैं।



3. आयनों की समन्वय संख्या (Coordination Number):

अधिक समन्वय संख्या वाले आयनों का आकार बड़ा होता है।



4. आइसोइलेक्ट्रॉनिक श्रेणी (Isoelectronic Series):

एक समान इलेक्ट्रॉनों वाले आयनों में, परमाणु संख्या बढ़ने के साथ आयोनिक त्रिज्या घटती है।

उदाहरण
   N³⁻ > O²⁻ > F⁻ > Na⁺ > Mg²⁺ > Al³⁺

महत्व:

आयोनिक त्रिज्या का उपयोग आयनिक यौगिकों की संरचना और स्थिरता को समझने के लिए किया जाता है।

2. क्रिस्टलीय त्रिज्या (Crystal Radius):

परिभाषा:
क्रिस्टलीय त्रिज्या वह दूरी है जो एक क्रिस्टल संरचना में किसी परमाणु या आयन के नाभिक से निकटतम पड़ोसी परमाणु या आयन के नाभिक तक होती है।

क्रिस्टलीय त्रिज्या की विशेषताएँ:

1. संपर्क प्रकार (Type of Packing):

परमाणु या आयन के आकार और क्रिस्टल में उनकी व्यवस्था (packing) पर निर्भर करता है।

2. रेडियस अनुपात (Radius Ratio):

यह कैशन और एनियन के आकार के अनुपात को दर्शाता है।

रेडियस अनुपात यौगिक की स्थिरता और उसकी ज्यामिति को निर्धारित करता है।

रेडियस अनुपात का सूत्र:
त्रिज्या अनुपात = (धनायन की त्रिज्या) / (ऋणायन की त्रिज्या)
Radius Ratio = (Radius of Cation) / (Radius of Anion)

त्रिज्या अनुपात और संरचना का संबंध:
  0.225 - 0.414: इस त्रिज्या अनुपात के लिए, आयनिक यौगिक की संरचना चतुष्फलकीय (Tetrahedral) होती है। इसमें धनायन को चार ऋणायन घेरे रहते हैं।
  0.414 - 0.732: इस त्रिज्या अनुपात के लिए, आयनिक यौगिक की संरचना अष्टफलकीय (Octahedral) होती है। इसमें धनायन को छह ऋणायन घेरे रहते हैं।
 >  0.732: इस त्रिज्या अनुपात के लिए, आयनिक यौगिक की संरचना घनीय (Cubic) होती है। इसमें धनायन को आठ ऋणायन घेरे रहते हैं।
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आवर्त सारणी में आयोनिक और क्रिस्टलीय त्रिज्या में परिवर्तन:

1. आवर्त में बाएँ से दाएँ:
आयोनिक त्रिज्या घटती है।

कारण: नाभिकीय आवेश (Z) बढ़ता है और इलेक्ट्रॉनों पर आकर्षण बढ़ता है।

2. समूह में ऊपर से नीचे:
आयोनिक त्रिज्या बढ़ती है।

कारण: नये ऊर्जा स्तर जुड़ने से बाहरी कक्षा की दूरी बढ़ जाती हैं।

उदाहरण (आयोनिक त्रिज्या):
महत्वपूर्ण बिंदु:

1. आयोनिक यौगिकों की स्थिरता:

छोटे और अधिक चार्ज वाले कैशन और बड़े एनियन यौगिकों को अधिक स्थिर बनाते हैं।

2. आयोनिक बंध की ताकत:

आयन के आकार में कमी और चार्ज में वृद्धि से बंध अधिक मजबूत होता है।

3. क्रिस्टल संरचनाएँ:

रेडियस अनुपात क्रिस्टल की ज्यामिति (जैसे, टेट्राहेड्रल, ऑक्टाहेड्रल) को निर्धारित करता है।

यहाँ आयोनिक और क्रिस्टलीय त्रिज्या को उनके भौतिक और रासायनिक गुणों के साथ विस्तृत रूप में समझाया गया है।
                                                                          
      सहसंयोजी त्रिज्या (Covalent Radius):

परिभाषा:

सहसंयोजी त्रिज्या उस दूरी का आधा भाग है जो सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़े दो समान परमाणुओं के नाभिकों के बीच होती है। यह परमाणु के आकार और सहसंयोजी बंध के प्रकार को दर्शाता है।

सहसंयोजी त्रिज्या = (दो समान परमाणुओं के नाभिकों के बीच की दूरी) / 2

सहसंयोजी त्रिज्या के प्रकार

1. ऑक्टाहेड्रल सहसंयोजी त्रिज्या (Octahedral Covalent Radius):

परिभाषा:
ऑक्टाहेड्रल संरचना में, परमाणु छह अन्य परमाणुओं से सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़ा होता है।

उदाहरण:   SF6, Mo(CO)6 आदि।

विशेषताएँ:

० बंध की लंबाई और परमाणु के आकार का निर्धारण       सहसंयोजी त्रिज्या से होता है।
० यह त्रिज्या बड़ी होती है क्योंकि परमाणु छह अन्य         परमाणुओं से संतुलित होता है।

2. टेट्राहेड्रल सहसंयोजी त्रिज्या (Tetrahedral Covalent Radius):

परिभाषा:
टेट्राहेड्रल संरचना में, परमाणु चार अन्य परमाणुओं से सहसंयोजी बंध द्वारा जुड़ा होता है।

उदाहरण:   CH4, SiCl4, आदि।

विशेषताएँ:

० इस संरचना में सहसंयोजी त्रिज्या अपेक्षाकृत छोटी       होती है।
० चार परमाणुओं के बीच कोण 109.5° होता है, जिससे बंध की  लंबाई और त्रिज्या कम हो जाती है।

सहसंयोजी त्रिज्या को प्रभावित करने वाले कारक

1. बंध का प्रकार (Type of Bond):

एकल बंध (Single Bond) > द्वि-बंध (Double Bond) > त्रि-बंध (Triple Bond)।

ट्रिपल बंध में सहसंयोजी त्रिज्या सबसे कम होती है।

2. परमाणु संख्या (Atomic Number):

० आवर्त सारणी में बाएँ से दाएँ जाने पर सहसंयोजी          त्रिज्या घटती है।
० निचले समूह में जाने पर त्रिज्या बढ़ती है।

3. इलेक्ट्रोन विन्यास (Electronic Configuration):

० s -ब्लॉक तत्वों की सहसंयोजी त्रिज्या बड़ी होती है।
० p -ब्लॉक में यह छोटी होती है।

4. आयनिकता (Ionicity):
० सहसंयोजी बंध में इलेक्ट्रॉनों के खिंचाव से त्रिज्या घटती है।
                                                                          
  आवर्त सारणी में सहसंयोजी त्रिज्या का परिवर्तन   

1. आवर्त में बाएँ से दाएँ:

० सहसंयोजी त्रिज्या घटती है।
० कारण: नाभिकीय आवेश (Z) बढ़ने से इलेक्ट्रॉन नाभिक के पास खिंचते हैं।

2. समूह में ऊपर से नीचे:

० सहसंयोजी त्रिज्या बढ़ती है।

० कारण: नए ऊर्जा स्तर जुड़ने से बाहरी कक्षा की दूरी बढ़ती है।

ऑक्टाहेड्रल और टेट्राहेड्रल त्रिज्या का अनुप्रयोग

1. अणु की ज्यामिति:

० सहसंयोजी त्रिज्या अणु के आकार और संरचना को निर्धारित करने में मदद करती है।

० उदाहरण: CH4 की टेट्राहेड्रल संरचना और SF6 की ऑक्टाहेड्रल संरचना।

2. बंध कोण और लंबाई:

० सहसंयोजी त्रिज्या से बंध कोण ( 109.5° या 90° ) और बंध लंबाई का मापन होता है।

3. रासायनिक प्रतिक्रिया:

० सहसंयोजी त्रिज्या से यह अनुमान लगाया जा सकता     है कि परमाणु कितनी आसानी से प्रतिक्रिया करेगा।

महत्वपूर्ण उदाहरण (Covalent Radii in pm):

सारांश:
सहसंयोजी त्रिज्या परमाणु और अणु के आकार, संरचना, और बंध की विशेषताओं को समझने में मदद करती है। टेट्राहेड्रल और ऑक्टाहेड्रल त्रिज्या से विभिन्न अणुओं की ज्यामिति और उनकी भौतिक-रासायनिक विशेषताओं को परिभाषित किया जा सकता है।
                                                                               आयनन एंथाल्पी (Ionization Enthalpy)       

परिभाषा:

आयनन एंथाल्पी वह न्यूनतम ऊर्जा होती है, जिसे किसी गैसीय अवस्था में उपस्थित परमाणु या आयन से एक इलेक्ट्रॉन को हटाने के लिए प्रदान किया जाता है। इसे किलो जूल प्रति मोल (kJ/mol) में मापा जाता है।

             M (g) + ΔH → M⁺(g) + e⁻

अर्थात् 
गैसीय अवस्था में मौजूद धातु M को ऊष्मा (ΔH) प्रदान करने पर, यह एक इलेक्ट्रॉन (e⁻) का त्याग करके धनात्मक आयन (M⁺) में परिवर्तित हो जाती है।
                                                                          
             आयनन एंथाल्पी के प्रकार.                      

1. प्रथम आयनन एंथाल्पी (First Ionization Enthalpy):

एक परमाणु से सबसे बाहरी कक्षा का पहला इलेक्ट्रॉन हटाने के लिए आवश्यक ऊर्जा।

             X (g) → X⁺(g) + e⁻

शब्दों में:
तत्व X का एक गैसीय परमाणु एक इलेक्ट्रॉन (e⁻) खोकर गैसीय अवस्था में एक धनात्मक आवेशित आयन (X⁺) बनाता है।

2. द्वितीय आयनन एंथाल्पी (Second Ionization Enthalpy):

गैसीय अवस्था के एक धनायन () से दूसरा इलेक्ट्रॉन हटाने के लिए आवश्यक ऊर्जा।

              X⁺(g) → X²⁺(g) + e⁻

शब्दों में:
एक गैसीय अवस्था में मौजूद X का एक धनात्मक आयन (X⁺) एक इलेक्ट्रॉन (e⁻) खोकर X का एक द्विधनात्मक आयन (X²⁺) बन जाता है।

3. क्रमिक आयनन एंथाल्पी (Successive Ionization Enthalpies):

प्रत्येक क्रमिक इलेक्ट्रॉन को हटाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता बढ़ती जाती है क्योंकि:

1. नाभिकीय आकर्षण बढ़ता है।
2. इलेक्ट्रॉनों की संख्या घटने से इलेक्ट्रॉन-इलेक्ट्रॉन          विकर्षण कम होता है।

आयनन एंथाल्पी को प्रभावित करने वाले कारक

1. परमाणु का आकार (Atomic Size):

परमाणु का आकार जितना बड़ा होगा, बाहरी इलेक्ट्रॉन नाभिक से उतना ही दूर होगा और आयनन एंथाल्पी कम होगी।

2. नाभिकीय आवेश (NUCLEAR CHARGE):

० नाभिकीय आवेश जितना अधिक होगा, इलेक्ट्रॉन को     हटाने के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होगी।

3. परिरक्षण प्रभाव (Shielding Effect):

० आंतरिक इलेक्ट्रॉनों द्वारा बाहरी इलेक्ट्रॉनों को नाभिकीय आकर्षण से परिरक्षित करने पर आयनन एंथाल्पी घट जाती है।

4. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration):

० स्थिर विन्यास (जैसे, पूर्ण s, p, या d उपकक्षा) वाले       परमाणुओं में आयनन एंथाल्पी अधिक होती है।

5. बंधन का प्रकार (Bonding Type):
० धातु में आयनन एंथाल्पी कम होती है, जबकि अधातुओं में अधिक होती है।

आवर्त सारणी में आयनन एंथाल्पी का परिवर्तन

1. आवर्त में बाएँ से दाएँ:
 आयनन एंथाल्पी बढ़ती है।

कारण: नाभिकीय आवेश बढ़ता है और परमाणु का आकार घटता है।

2. समूह में ऊपर से नीचे:
० आयनन एंथाल्पी घटती है।

कारण: परमाणु का आकार बढ़ता है और परिरक्षण प्रभाव बढ़ता है।

आवर्त सारणी के कुछ विशेष रुझान (Trends):

1. अल्कली धातु (Alkali Metals):
० सबसे कम आयनन एंथाल्पी।

2. अक्रिय गैसें (Noble Gases):
सबसे अधिक आयनन एंथाल्पी।

3. जिग-ज़ैग पैटर्न:

० स्थिर विन्यास वाले तत्वों (जैसे Be, N, Ne) की           आयनन एंथाल्पी अधिक होती है।

आयनन एंथाल्पी के अनुप्रयोग (Applications of Ionization Enthalpy):

1. धातु और अधातु का निर्धारण:

० कम आयनन एंथाल्पी वाले तत्व धातु होते हैं।

० उच्च आयनन एंथाल्पी वाले तत्व अधातु होते हैं।

2. रासायनिक अभिक्रियाएँ:

उच्च आयनन एंथाल्पी वाले तत्व कम प्रतिक्रियाशील होते हैं।

उदाहरण: अक्रिय गैसें।

3. बंध बनने की प्रवृत्ति:

कम आयनन एंथाल्पी वाले तत्व आसानी से धनायन () बनाते हैं।

4. उर्जा निर्धारण:

आयनन एंथाल्पी से किसी तत्व की रासायनिक स्थिरता और ऊर्जा आवश्यकताओं का आकलन किया जा सकता है।

5. आवर्त सारणी में स्थान निर्धारण:

आयनन एंथाल्पी के आधार पर तत्वों को उनकी सही स्थिति में रखा जा सकता है।
                                                                                                 महत्वपूर्ण उदाहरण:                       

सारांश:
आयनन एंथाल्पी किसी तत्व के रासायनिक गुणों और उसकी प्रतिक्रियात्मकता को समझने का एक महत्वपूर्ण मापदंड है। यह तत्वों की आवर्त सारणी में स्थिति, बंध बनने की प्रवृत्ति और उनकी ऊर्जा आवश्यकताओं को निर्धारित करने में सहायक है।
                                                                          
इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी (Electron Gain Enthalpy):                                                        

परिभाषा:

इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी वह ऊर्जा परिवर्तन है जो किसी गैसीय अवस्था के परमाणु द्वारा एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने पर होता है। इसे किलो जूल प्रति मोल (kJ/mol) में मापा जाता है।

             X(g) + e⁻ → X⁻(g) + ΔH

यदि ऊर्जा निकलती है, तो इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी ऋणात्मक होगी।
Example: क्लोरीन (Cl) परमाणु में 7 वैलेंस इलेक्ट्रॉन होते हैं। यह आर्गन (Ar) जैसा स्थिर ऑक्टेट विन्यास प्राप्त करने के लिए एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है। यह प्रक्रिया ऊष्माक्षेपी है:
Cl(g) + e⁻ → Cl⁻(g) + ΔH (ΔH ऋणात्मक है)

यदि ऊर्जा अवशोषित होती है, तो इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी धनात्मक होगी।
                                                                          
            इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी के प्रकार:             

1. प्रथम इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी:
एक इलेक्ट्रॉन जोड़ने पर ऊर्जा का परिवर्तन।

            X(g) + e⁻ → X⁻(g)

यह समीकरण दर्शाता है कि एक उदासीन गैसीय परमाणु (X) एक इलेक्ट्रॉन (e⁻) को स्वीकार करके ऋणात्मक आवेशित आयन (X⁻) बनाता है।
Example: क्लोरीन (Cl) परमाणु में 7 संयोजकता इलेक्ट्रॉन होते हैं। यह आर्गन (Ar) जैसा स्थिर अष्टक विन्यास प्राप्त करने के लिए एक इलेक्ट्रॉन प्राप्त करता है।
          Cl(g) + e⁻ → Cl⁻(g)

2. द्वितीय इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी:

एक ऋणायन (—) में दूसरा इलेक्ट्रॉन जोड़ने पर ऊर्जा का परिवर्तन।

         X⁻(g) + e⁻ → X²⁻(g) + Energy

एक गैसीय अवस्था में मौजूद X का एक ऋणायन (X⁻) एक और इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करता है और एक नए ऋणायन (X²⁻) में परिवर्तित हो जाता है।
                                                                          
इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी को प्रभावित करने वाले कारक:

1. परमाणु का आकार (Atomic Size):

छोटे परमाणु में नाभिकीय आकर्षण अधिक होने के कारण इलेक्ट्रॉन को जोड़ने में अधिक ऊर्जा निकलती है।

2. नाभिकीय आवेश (Nuclear Charge):

नाभिकीय आवेश जितना अधिक होगा, इलेक्ट्रॉन उतना ही आसानी से जुड़ेगा, जिससे एंथाल्पी अधिक ऋणात्मक होगी।

3. परिरक्षण प्रभाव (Shielding Effect):

आंतरिक इलेक्ट्रॉनों द्वारा बाहरी इलेक्ट्रॉनों को परिरक्षित करने से नाभिकीय आकर्षण घटता है, जिससे इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी कम हो जाती है।

4. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration):

स्थिर विन्यास (जैसे पूर्ण S, p, या d उपकक्षाएँ) वाले तत्वों की इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी कम ऋणात्मक या धनात्मक होती है।

5. आयनन स्थिति (Ion State):

उच्च नकारात्मक आवेश वाले आयन में इलेक्ट्रॉन जोड़ने पर ऊर्जा अवशोषित होती है।

आवर्त सारणी में इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी का रुझान (Trends):

1. आवर्त में बाएँ से दाएँ:

० इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी अधिक ऋणात्मक होती है।
० कारण: नाभिकीय आवेश बढ़ता है और परमाणु का आकार घटता है।

2. समूह में ऊपर से नीचे:

० इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी कम ऋणात्मक होती है।
० कारण: परमाणु का आकार बढ़ने और परिरक्षण           प्रभाव बढ़ने से बाहरी इलेक्ट्रॉन पर नाभिकीय               आकर्षण घटता है।

3. विशेष रुझान:

N, P, As, आदि में इलेक्ट्रॉन जोड़ने पर ऊर्जा अवशोषित होती है क्योंकि इनका 1S²2S²2p³ विन्यास (अर्ध-भरी हुई स्थिति) में स्थिर होता है।

अक्रिय गैसों ( He,Ne आदि) की इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी धनात्मक होती है क्योंकि इनका विन्यास पूर्ण भरा हुआ है।
                                                                          
                कुछ महत्वपूर्ण उदाहरण:                      

इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी के अनुप्रयोग (Applications):

1. धातु और अधातु का निर्धारण:
० उच्च ऋणात्मक एंथाल्पी वाले तत्व अधातु होते हैं।
० कम ऋणात्मक एंथाल्पी वाले तत्व धातु होते हैं।

2. रासायनिक प्रतिक्रिया:
० अधिक ऋणात्मक एंथाल्पी वाले तत्व ऑक्सीकरण-       अपचयन अभिक्रियाओं में बेहतर ऑक्सीकृत करने       वाले होते हैं।

3. बंधन निर्माण:
० इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी से यह तय होता है कि तत्व       आयनिक या सहसंयोजक बंध बनाएगा।

4. ऊर्जा संतुलन:
० एंथाल्पी का उपयोग रासायनिक अभिक्रियाओं की ऊर्जा संतुलन को समझने में किया जाता है।

सारांश:
इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी परमाणु द्वारा इलेक्ट्रॉन प्राप्त करने की प्रवृत्ति को दर्शाती है। यह तत्वों की रासायनिक प्रतिक्रिया और उनके ऑक्सीकरण गुणों को समझने में मदद करती है। आवर्त सारणी में इसके रुझान तत्वों की स्थिति और उनकी विशेषताओं को स्पष्ट करते हैं।
                                                                          
विद्युतऋणात्मकता (Electronegativity):

परिभाषा:

विद्युतऋणात्मकता एक परमाणु की वह प्रवृत्ति है जिससे वह सहसंयोजक बंध में बाँधने वाले इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

विद्युतऋणात्मकता का कोई निश्चित मात्रात्मक माप नहीं होता।

इसे विभिन्न वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न पैमानों (scales) पर मापा गया है।



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विद्युतऋणात्मकता मापने की पैमाने (Scales):

1. पॉलिंग पैमाना (Pauling Scale):

इसे सबसे अधिक उपयोग किया जाता है।

विद्युतऋणात्मकता का माप बंध की ऊर्जा के आधार पर किया जाता है।

पॉलिंग ने इसे निम्नलिखित सूत्र से परिभाषित किया:

विशेषताएँ:

विद्युतऋणात्मकता का मान H के लिए 2.1 और F के लिए 4.0 है।

विद्युतऋणात्मकता का मान आवर्त सारणी में बाएँ से दाएँ बढ़ता है और ऊपर से नीचे घटता है।

2. मुलिकन पैमाना (Mullikan Scale):

मुलिकन ने विद्युतऋणात्मकता को परमाणु की आयनन एंथाल्पी (I) और इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी (E) के औसत से परिभाषित किया।

                    χ = (I + E)/2

3. ऑलरेड-रोचो पैमाना (Allred-Rochow Scale):

यह विद्युतऋणात्मकता को परमाणु के प्रभावी नाभिकीय आवेश (Zeff) और कोवैलेंट रेडियस के आधार पर मापता है। 

सूत्र             χ= Zeff/r²

                                                                         
विद्युतऋणात्मकता और बंध आदेश  (Electronegativity and Bond Order):            

विद्युतऋणात्मकता का अंतर जितना अधिक होगा, बंध का आयनिक चरित्र उतना अधिक होगा।

सहसंयोजक बंध में बंध आदेश बंधन की ताकत को दर्शाता है:

Bond Order ∝ Electronegativity Difference

आंशिक आवेश (Partial Charge):

० जब दो परमाणुओं की विद्युतऋणात्मकता में अंतर       होता है, तो इलेक्ट्रॉनों का वितरण असमान हो जाता है।

० इससे एक परमाणु पर आंशिक धनात्मक (+δ) और     दूसरे पर आंशिक ऋणात्मक (—δ) आवेश                    उत्पन्न होता है।

  इसका माप निम्नलिखित समीकरण द्वारा किया जा        सकता है:

           μ = q ⋅ d
                                                                          
       हाइब्रिडीकरण और विद्युतऋणात्मकता 
   (Hybridization and Electronegativity):     

० हाइब्रिडीकरण से परमाणु की विद्युतऋणात्मकता           प्रभावित होती है।
 ० sp हाइब्रिड कक्षाओं में विद्युतऋणात्मकता सबसे              अधिक होती है।
० sp³ > sp² > sp

अधिक s-कैरेक्टर वाली कक्षाओं में विद्युतऋणात्मकता अधिक होती है।

समूह विद्युतऋणात्मकता (Group Electronegativity):

एक कार्यात्मक समूह की विद्युतऋणात्मकता उस समूह के पूरे रासायनिक व्यवहार को प्रभावित करती है।

इसे समूह के अवयव परमाणुओं की व्यक्तिगत विद्युतऋणात्मकता से निकाला जाता है।
                                                                          
            ( संकरण ) Hybridization।                    

परिभाषा:

संकरण (Hybridization) वह प्रक्रिया है जिसमें एक परमाणु के विभिन्न कक्षीयों (orbitals) का सम्मिश्रण (mixing) होता है, जिससे समान ऊर्जा और ज्यामितीय आकृति वाले नए कक्षीय (hybrid orbitals) बनते हैं।

उदाहरण:
कार्बन के  संकरण में  और  कक्षीय सम्मिश्रण करके चार समान ऊर्जा वाले  संकरित कक्षीय बनाते हैं।

संकरण का महत्व

1. अणुओं के बंधन निर्माण को समझाने में।

2. अणुओं की ज्यामिति और आकार का निर्धारण करने में।

3. बंध कोण (bond angle) और बंध की ताकत को स्पष्ट करने में।

        संकरण के प्रकार और उनकी विशेषताएँ.        

1. sp संकरण

संकरण में सम्मिलित कक्षीय: 1s और 1p

संकरित कक्षीयों की संख्या: 2

ज्यामिति: रैखिक (Linear)

बंधन कोण: 180°

उदाहरण: BeCl2, CO2, C2H2

आकार: संकरित कक्षीय लंबाई में खिंचे होते हैं और अधिक बंधन क्षमता रखते हैं।

2. sp² संकरण

संकरण में सम्मिलित कक्षीय: 1s और 2p

संकरित कक्षीयों की संख्या: 3

ज्यामिति: त्रिकोणीय समतल (Trigonal Planar)

बंधन कोण: 120°

उदाहरण:  BF3, C2H4(एथीन)

विशेषता:
एक p-कक्षीय असंकरित रहता है, जो -बंध बनाता है।

3. sp³ संकरण

संकरण में सम्मिलित कक्षीय: 1और 3p

 संकरित कक्षीयों की संख्या: 4

ज्यामिति: टेट्राहेडरल (Tetrahedral)

बंधन कोण: 109.5°

उदाहरण: CH4(मीथेन), NH3,H2O

विशेषता:
सभी कक्षीय समान ऊर्जा और आकार के होते हैं।

4. sp³d संकरण

संकरण में सम्मिलित कक्षीय: 1s, 3p और 1d

संकरित कक्षीयों की संख्या: 5

ज्यामिति: त्रिकोणीय द्विपिरामिडीय (Trigonal Bipyramidal)

बंधन कोण: 90° और 120°

उदाहरण: PCl5,SF4

5. sp³d² संकरण

संकरण में सम्मिलित कक्षीय: 1s, 3p, और 2d

संकरित कक्षीयों की संख्या: 6

ज्यामिति: अष्टाभुजी (Octahedral)।

बंधन कोण: 90°

उदाहरण:

SF6,XeF4

6. sp³d³ संकरण

संकरण में सम्मिलित कक्षीय: 1s, 3p, और 3d

संकरित कक्षीयों की संख्या: 7

ज्यामिति: पेंटागोनल बाईपिरामिडल (Pentagonal Bipyramidal)

उदाहरण: IF7
                                                                          
संकरण प्रक्रिया का उदाहरण: CH4 में sp³ संकरण 

1. कार्बन का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास:

Ground State: 1s² 2s² 2p²

2. उत्तेजित अवस्था (Excited State):
एक इलेक्ट्रॉन 2s से 2p में स्थानांतरित हो जाता है:

Excited State: 1s² 2s¹ 2p³

3. संकरण:
 2और 2p कक्षीय सम्मिश्रण करके sp³ कक्षीय बनाते हैं।

4. परिणाम:
चार समान ऊर्जा वाले sp³ संकरित कक्षीय बनते हैं, जो हाइड्रोजन के साथ चार σ - बंध बनाते हैं।

                                                                          
                    संकरण और बंध कोण                      

संकरण बंध कोण को नियंत्रित करता है:

संकरण के महत्व:

1. अणु की ज्यामिति समझने में मदद करता है।

2. बंध निर्माण की प्रक्रिया को स्पष्ट करता है।

3. रासायनिक अभिक्रियाओं के तंत्र (mechanism) को समझने में सहायक।

4. अणुओं के भौतिक और रासायनिक गुणों की व्याख्या।

सारांश:

संकरण एक महत्वपूर्ण रासायनिक प्रक्रिया है जो अणु की संरचना, बंध निर्माण, और बंध कोण को स्पष्ट करती है। , , और  जैसे संकरण प्रकार अणुओं के भौतिक और रासायनिक गुणों को समझने में सहायक होते हैं।
                                                                          
    विद्युत्ऋणात्मकता ELECTRONEGATIVITY   
विद्युतऋणात्मकता (Electronegativity) का विस्तृत विवरण

परिभाषा
विद्युतऋणात्मकता एक परमाणु की वह प्रवृत्ति है जिससे वह सहसंयोजक बंध में बाँधने वाले इलेक्ट्रॉनों को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह एक सापेक्ष माप है और इसका मापन मात्रात्मक नहीं होता।

उच्च विद्युतऋणात्मकता वाले तत्व सहसंयोजक बंध में अधिक इलेक्ट्रॉन अपनी ओर खींचते हैं।

विद्युतऋणात्मकता तत्वों की रासायनिक प्रतिक्रियाओं और बंध बनाने की प्रवृत्ति को प्रभावित करती है।

विद्युतऋणात्मकता के मापन के पैमाने (Scales)

1. पॉलिंग पैमाना (Pauling Scale):

० सबसे व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला             पैमाना।

० इसे रासायनिक बंध की ऊर्जा के आधार पर                 परिभाषित किया गया है।

० पॉलिंग ने इलेक्ट्रॉन के आकर्षण की ताकत को         निम्नलिखित समीकरण से व्यक्त किया:
विशेषताएँ:
० फ़्लोरीन (F) की विद्युतऋणात्मकता सबसे अधिक          (4.0) है।
० हाइड्रोजन (H) की विद्युतऋणात्मकता 2.1  है।

2. मुलिकन पैमाना (Mullikan Scale):

मुलिकन ने विद्युतऋणात्मकता को आयनन एंथाल्पी (I) और इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी (E) के औसत से परिभाषित किया:

        χ =       I + E   
                      2

3. ऑलरेड-रोचो पैमाना (Allred-Rochow Scale):

विद्युतऋणात्मकता को परमाणु के प्रभावी नाभिकीय आवेश (Zeff) और कोवालेन्ट त्रिज्या के आधार पर मापा जाता है:

 सूत्र: χ = Zeff/r²

4. सैंडरसन का पैमाना (Sanderson Scale):

यह विद्युतऋणात्मकता को इलेक्ट्रॉन घनत्व के आधार पर मापता है।

अधिक इलेक्ट्रॉन घनत्व वाले तत्वों की विद्युतऋणात्मकता अधिक होती है।

विद्युतऋणात्मकता का आवर्त सारणी में रुझान (Trends):

1. आवर्त में बाएँ से दाएँ:
विद्युतऋणात्मकता बढ़ती है।

कारण:
० नाभिकीय आवेश (Z) बढ़ता है।
० परमाणु का आकार घटता है।

2. समूह में ऊपर से नीचे:
विद्युतऋणात्मकता घटती है।

कारण:
० परमाणु का आकार बढ़ता है।
० परिरक्षण प्रभाव (shielding effect) अधिक होता      है।

विद्युतऋणात्मकता को प्रभावित करने वाले कारक:

1. नाभिकीय आवेश (Nuclear Charge):
नाभिकीय आवेश जितना अधिक होगा, विद्युतऋणात्मकता उतनी अधिक होगी।

2. परमाणु का आकार (Atomic Size):
छोटा परमाणु बंधित इलेक्ट्रॉनों को अधिक आकर्षित करता है।

3. इलेक्ट्रॉनिक विन्यास (Electronic Configuration):
पूर्ण भरी हुई कक्षाओं वाले तत्वों की विद्युतऋणात्मकता कम होती है।

4. परिरक्षण प्रभाव (Shielding Effect):
अधिक परिरक्षण प्रभाव होने पर बाहरी इलेक्ट्रॉनों पर नाभिकीय आकर्षण कम हो जाता है, जिससे विद्युतऋणात्मकता घट जाती है।

विद्युतऋणात्मकता और बंध के प्रकार:

1. आयनिक बंध:
उच्च विद्युतऋणात्मकता अंतर (>1.7) वाले तत्व आयनिक बंध बनाते हैं।

उदाहरण: NaCl, CaCl2 

2. सहसंयोजक बंध:
समान विद्युतऋणात्मकता (< 0.5) वाले तत्व सहसंयोजक बंध बनाते हैं।

उदाहरण: H2,Cl2 

3. ध्रुवीय सहसंयोजक बंध:
विद्युतऋणात्मकता का अंतर 0.5 –1.7  के बीच हो तो बंध ध्रुवीय सहसंयोजक होता है।

उदाहरण: HCl,NH3

विद्युतऋणात्मकता और ध्रुवीयता (Polarity):
बंध में विद्युतऋणात्मकता के अंतर के कारण आंशिक आवेश (+δ और —δ ) उत्पन्न होता है।

यह अणु को ध्रुवीय बनाता है।

उदाहरण:
०H2 :गैर-ध्रुवीय।
० HCl :ध्रुवीय।

विद्युतऋणात्मकता के अनुप्रयोग (Applications):

1. बंध की प्रकृति समझने में:
विद्युतऋणात्मकता के अंतर से बंध का आयनिक या सहसंयोजक स्वभाव निर्धारित किया जाता है।

2. अणुओं की ध्रुवीयता का निर्धारण:
विद्युतऋणात्मकता अंतर से ध्रुवीयता और द्विध्रुव आघूर्ण (μ) का मापन होता है।

3. रासायनिक प्रतिक्रियाओं की प्रवृत्ति:
अधिक विद्युतऋणात्मक तत्व ऑक्सीकरण-अभिकर्ता (oxidizing agent) होते हैं।

4. जैविक और अकार्बनिक यौगिकों का अध्ययन:
अणुओं के भौतिक और रासायनिक गुणों को समझने मे।

महत्वपूर्ण विद्युतऋणात्मकता मान (Pauling Scale):
सारांश:
विद्युतऋणात्मकता परमाणु की वह प्रवृत्ति है जो बंधित इलेक्ट्रॉनों को आकर्षित करने की क्षमता को दर्शाती है। विभिन्न पैमानों (पॉलिंग, मुलिकन, ऑलरेड-रोचो) के माध्यम से इसे मापा जाता है। विद्युतऋणात्मकता तत्वों के रासायनिक गुण, बंध निर्माण, और अणुओं की ध्रुवीयता को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

 
                                                                         
           सैंडरसन इलेक्ट्रॉन घनत्व अनुपात 
     (Sanderson Electron Density Ratio):      

सैंडरसन ने विद्युतऋणात्मकता को इलेक्ट्रॉन घनत्व के आधार पर मापा।

यह अनुपात परमाणु की स्थिरता और विद्युत ऋणात्मकता का संकेत देता है।

सूत्र:  χ = परमाणु का इलेक्ट्रॉन घनत्व / औसत इलेक्ट्रॉन घनत्व
English:
χ = Electron Density of Atom / Mean Electron Density
यह समीकरण χ (ची) नामक एक राशि को परिभाषित करता है, जो किसी विशिष्ट परमाणु के इलेक्ट्रॉन घनत्व और किसी तंत्र या किसी विशेष क्षेत्र के औसत इलेक्ट्रॉन घनत्व के अनुपात को दर्शाता है।
                                                                          
              विद्युतऋणात्मकता के प्रभाव:                  

1. बंधन की प्रकृति पर प्रभाव:

० उच्च विद्युतऋणात्मकता अंतर वाले बंध आयनिक         होते हैं।
० समान विद्युतऋणात्मकता वाले बंध सहसंयोजक होते     हैं।

2. रासायनिक प्रतिक्रियाएँ:
अधिक विद्युतऋणात्मक तत्व ऑक्सीकरण अभिकर्ता के रूप में कार्य करते हैं।

3. ध्रुवीयता:
अधिक विद्युतऋणात्मकता अंतर वाले बंध अधिक ध्रुवीय होते हैं।

सारांश:
विद्युतऋणात्मकता तत्वों के रासायनिक गुणों को समझने के लिए एक प्रमुख अवधारणा है। विभिन्न पैमाने इसे मापने के लिए उपयोग किए जाते हैं, जिनमें पॉलिंग, मुलिकन, और ऑलरेड-रोचो प्रमुख हैं। विद्युतऋणात्मकता बंध के प्रकार, ध्रुवीयता, और रासायनिक प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
                                                                          
तत्वों की आवर्तता से संबंधित 50 एक-नंबर के                                  प्रश्न उत्तर                                 

1. प्रभावी नाभिकीय आवेश (Effective Nuclear Charge)

1. प्रश्न: प्रभावी नाभिकीय आवेश क्या है?
उत्तर: नाभिक का वह आवेश जो बाहरी इलेक्ट्रॉनों पर कार्य करता है।

2. प्रश्न: प्रभावी नाभिकीय आवेश को मापने के लिए कौन सा नियम उपयोग होता है?
उत्तर: स्लेटर का नियम।

3. प्रश्न: प्रभावी नाभिकीय आवेश आवर्त सारणी में किस दिशा में बढ़ता है?
उत्तर: बाएँ से दाएँ।

4. प्रश्न: नाभिकीय आवेश बढ़ने का कारण क्या है?
उत्तर: प्रोटॉनों की संख्या का बढ़ना।

5. प्रश्न: स्क्रीनिंग प्रभाव किससे संबंधित है?
उत्तर: आंतरिक इलेक्ट्रॉनों द्वारा बाहरी इलेक्ट्रॉनों को परिरक्षित करना।

2. परमाणु त्रिज्या (Atomic Radii)

6. प्रश्न: आवर्त सारणी में परमाणु त्रिज्या बाएँ से दाएँ क्यों घटती है?
उत्तर: प्रभावी नाभिकीय आवेश बढ़ने के कारण।

7. प्रश्न: परमाणु त्रिज्या में समूह में ऊपर से नीचे क्या होता है?
उत्तर: यह बढ़ती है।

8. प्रश्न: परमाणु त्रिज्या का सबसे बड़ा तत्व कौन है?
उत्तर: फ्रैंशियम।

9. प्रश्न: वान डर वाल्स त्रिज्या किस प्रकार के अणुओं के लिए मानी जाती है?
उत्तर: गैर-बंधनकारी अणु।

10. प्रश्न: सहसंयोजक त्रिज्या वान डर वाल्स त्रिज्या से क्यों छोटी होती है?
उत्तर: बंधन में आने से परमाणु सिकुड़ जाते हैं।

3. आयनिक और क्रिस्टलीय त्रिज्या (Ionic and Crystal Radii)

11. प्रश्न: धनायन की त्रिज्या मूल तत्व से क्यों छोटी होती है?
उत्तर: इलेक्ट्रॉन घटने से नाभिकीय आकर्षण बढ़ता है।

12. प्रश्न: ऋणायन की त्रिज्या मूल तत्व से क्यों बड़ी होती है?
उत्तर: इलेक्ट्रॉन बढ़ने से नाभिकीय आकर्षण घटता है।

13. प्रश्न: Na⁺ और Cl⁻ में किसकी त्रिज्या अधिक है?
उत्तर: Cl⁻।

14. प्रश्न: समनायनिक तत्वों में त्रिज्या किस पर निर्भर करती है?
उत्तर: परमाणु संख्या।

15. प्रश्न: क्रिस्टलीय त्रिज्या किससे संबंधित होती है?
उत्तर: आयनों के आकार से।

4. सहसंयोजक त्रिज्या (Covalent Radii)

16. प्रश्न: सहसंयोजक त्रिज्या किस प्रकार के बंधों में होती है?
उत्तर: सहसंयोजक बंध।

17. प्रश्न: सहसंयोजक त्रिज्या का मापन किस इकाई में किया जाता है?
उत्तर: पिकोमीटर।

18. प्रश्न: ऑक्टाहेड्रल और टेट्राहेड्रल त्रिज्या किससे संबंधित है?
उत्तर: बंधन के ज्यामितीय आकार से।

19. प्रश्न: सहसंयोजक त्रिज्या के लिए कौन सी तकनीक उपयोग होती है?
उत्तर: एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी।

20. प्रश्न: किस तत्व की सहसंयोजक त्रिज्या सबसे छोटी है?
उत्तर: हीलियम।

5. आयनन एंथाल्पी (Ionization Enthalpy)

21. प्रश्न: आयनन एंथाल्पी क्या है?
उत्तर: वह ऊर्जा जो गैसीय अवस्था के परमाणु से इलेक्ट्रॉन निकालने के लिए चाहिए।

22. प्रश्न: प्रथम आयनन एंथाल्पी किस तत्व की सबसे अधिक है?
उत्तर: हीलियम।

23. प्रश्न: आयनन एंथाल्पी पर कौन-कौन से कारक प्रभाव डालते हैं?
उत्तर: परमाणु का आकार, नाभिकीय आवेश, और परिरक्षण प्रभाव।

24. प्रश्न: समूह में आयनन एंथाल्पी ऊपर से नीचे क्यों घटती है?
उत्तर: परमाणु का आकार बढ़ने के कारण।

25. प्रश्न: आवर्त में आयनन एंथाल्पी बाएँ से दाएँ क्यों बढ़ती है?
उत्तर: नाभिकीय आवेश बढ़ने और परमाणु त्रिज्या घटने के कारण।

6. इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी (Electron Gain Enthalpy)

26. प्रश्न: इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी ऋणात्मक कब होती है?
उत्तर: जब ऊर्जा मुक्त होती है।

27. प्रश्न: कौन से तत्व की इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी सबसे अधिक ऋणात्मक है?
उत्तर: क्लोरीन।

28. प्रश्न: इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी का रुझान समूह में क्या होता है?
उत्तर: यह ऊपर से नीचे घटती है।

29. प्रश्न: आवर्त में बाएँ से दाएँ इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी क्यों बढ़ती है?
उत्तर: परमाणु का आकार घटने के कारण।

30. प्रश्न: नाइट्रोजन की इलेक्ट्रॉन प्राप्ति एंथाल्पी धनात्मक क्यों है?
उत्तर: अर्ध-भरे हुए p-कक्षीय की स्थिरता के कारण।

7. विद्युतऋणात्मकता (Electronegativity)

31. प्रश्न: पॉलिंग पैमाने पर सबसे अधिक विद्युतऋणात्मक तत्व कौन सा है?
उत्तर: फ़्लोरीन।

32. प्रश्न: विद्युतऋणात्मकता का मापन किस पर निर्भर करता है?
उत्तर: नाभिकीय आवेश और परमाणु का आकार।

33. प्रश्न: विद्युतऋणात्मकता आवर्त में बाएँ से दाएँ क्यों बढ़ती है?
उत्तर: नाभिकीय आकर्षण बढ़ने के कारण।

34. प्रश्न: सैंडरसन का पैमाना किस पर आधारित है?
उत्तर: इलेक्ट्रॉन घनत्व अनुपात।

35. प्रश्न: विद्युतऋणात्मकता का रुझान समूह में क्या होता है?
उत्तर: यह ऊपर से नीचे घटती है।

8. बंध क्रम और आंशिक आवेश (Bond Order and Partial Charge)

36. प्रश्न: बंध क्रम का सूत्र क्या है?
उत्तर: बंध क्रम = (बंधनकारी इलेक्ट्रॉन की संख्या - प्रतिबंधनकारी इलेक्ट्रॉन की संख्या) / 2
                        Or
                                                                          
Formula Bond order = (Number of bonding electrons - Number of anti-bonding electrons) / 2                                               

37. प्रश्न: आंशिक आवेश किससे उत्पन्न होता है?
उत्तर: विद्युतऋणात्मकता के अंतर से।

38. प्रश्न: बंध आदेश और बंध की स्थिरता का संबंध क्या है?
उत्तर: बंध आदेश जितना अधिक होगा, बंध उतना स्थिर होगा।

39. प्रश्न: ध्रुवीयता किसके कारण होती है?
उत्तर: आंशिक आवेश।

40. प्रश्न: बंध क्रम का मान शून्य कब होता है?
उत्तर: जब सभी कक्षीय प्रतिबंधकारी हों।

9. हाइब्रिडीकरण और समूह विद्युतऋणात्मकता

41. प्रश्न: sp3, sp2, और sp  में सबसे अधिक विद्युतऋणात्मकता किसमें होती है?
उत्तर: sp ।

42. प्रश्न: हाइब्रिडीकरण विद्युतऋणात्मकता को कैसे प्रभावित करता है?
उत्तर: s-कैरेक्टर के बढ़ने से विद्युतऋणात्मकता बढ़ती है।

43. प्रश्न: समूह विद्युतऋणात्मकता किस पर आधारित होती है?
उत्तर: समूह के सभी अवयवों की औसत विद्युतऋणात्मकता।

44. प्रश्न: समूह विद्युतऋणात्मकता का उपयोग कहाँ होता है?
उत्तर: अणुओं के ध्रुवीयता का निर्धारण करने में।

45. प्रश्न: सैंडरसन के अनुपात में क्या दर्शाया गया है?
उत्तर: इलेक्ट्रॉन घनत्व और परमाणु की स्थिरता।

10. अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

46. प्रश्न: सबसे बड़ा तत्व कौन सा है?
उत्तर: फ्रैंशियम।

47. प्रश्न: सबसे छोटा तत्व कौन सा है?
उत्तर: हीलियम।

48. प्रश्न: प्रथम आयनन एंथाल्पी सबसे कम किसकी है?
उत्तर: फ्रैंशियम।

49. प्रश्न: सहसंयोजक त्रिज्या किस पर निर्भर करती है?
उत्तर: परमाणु के बंधों की प्रकृति।

50. प्रश्न: नाभिकीय आवेश किससे संबंधित है?
उत्तर: प्रोटॉनों की संख्या।

इन प्रश्नों के माध्यम से "तत्वों की आवर्तिता" से संबंधित सभी प्रमुख अवधारणाओं को एक नंबर के प्रश्नों में कवर किया गया है।




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